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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि-धर्म [२] ५. अपरिग्रह जीव आश्रित राग द्वेषादि अंतरंग परिग्रह, जीवसे खबद्ध धन धान्यादि अचेतन परिग्रह, तथा जीवसे जिनकी उत्पत्ति है ऐसे मोती, संख, दांत, कंबल इत्यादिका शक्ति भर त्याग, अथवा इनमे इतर जो संयम, ज्ञान व शौच के उपकरण इनमें ममत्वका न रखना, यह असंग अर्थात् परिग्रहत्याग महाव्रत है ॥९॥ समिति-५ ईर्या समिति ( गमनागमन में सावधानी ), भाषा समिति, एषणा समिति, ( आहार में सावधानी ), आदान-निक्षेपण समिति उपकरण रखने उठाने में सावधानी ) मूत्रविष्ठादिका शुद्धभूमिमें क्षेपण अर्थात् प्रतिष्ठापना समिति, ये पाँच समितियां हैं | || १० ॥ ८५ १. ईर्ष्या निर्जीव मार्ग से दिनमें चार हाथ प्रमाण देखकर अपने कार्य के लिए प्राणियोंको पीड़ा नहीं देते हुए संयमीका जो गमन है वह इर्या समिति है ॥ ११ ॥ २. भाषा झूठा दोष लगानेरूप पैशुन्य, व्यर्थ हँसना, कठोर बचन, दूसरेके दोष प्रकट करनेरूप परनिंदा, अपनी प्रशंसा; स्त्रीकथा, भोजनकथा, राजकथा, चोरकथा इत्यादिक वचनोंको छोड़कर अपने और परके लिये हितकारी वचन बोलना, इसे भाषा समिति कहते हैं ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only ३. एषणा उद्गमादि छयालिस दोषों से रहित, भूख आदि मेटना व धर्म साधनादि कारणयुक्त, कृतकारित आदि नौ विकल्पोंसे विशुद्ध, ठंडा गर्म आदि भोजन में रागद्वेष रहित समभाव कर भोजन करना यह निर्मल एषणा समिति है | ॥१३॥ ४. आदान-निक्षेप ज्ञानके निमित्त पुस्तक आदि उपकरण रूप ज्ञानोपाधि, पापक्रियाकी निवृत्तिरूप संयम के लिए पीछी आदिक संयमोपाध, मूत्रविष्ठा आदि देइमलके प्रक्षालनरूप शौचका उपकरण कमंडलु आदि शौचोपधि, और अन्य सांथरे आदिके निमित्त उपकरणरूप अन्योपधि, इनका यत्नपूर्वक ( देख शोधकर) उठाना रखना, यह आदान-निक्षेपण समिति है || १४ ||
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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