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अतएव उन्होंने इन दोनों कोटियों--इन्द्रियलिप्सा और कायक्लेश-का परित्याग कर 'मध्यम पथ' का आविष्कार किया और वही बौद्ध धर्म कहलाया। महात्मा बुद्ध ने जो बनारस के समीप सारनाथ में अपना 'धर्मचक्र प्रवर्तन' किया उसका सार चार आर्यसत्यों और अष्टाङ्गिक मार्ग में अन्तनिहित है। म. बुद्ध के चार आर्य सत्य है : दुःख, दुःखसमुदय, दुःस्व निरोध और दुःखनिरोधमामिनी प्रतिपदा । अर्थात् जीवन दुःखमय है-जन्म, जरा, मरण, शोक, परिदेव, दौर्मनस्य, उपायास तथा इष्टवियोग और अनिष्ट संयोग एवं रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार व विज्ञान ये पांच स्कंध सब दुक्खरूप हैं। इन समस्त सांसारिक दुक्खों का कारण है, और वह है हमारी तष्णा-कामतष्णा, भवतष्णा और विभवतृष्णा । दुखों से मुक्ति पाने के लिये इसी तृष्णा का निरोध करना आवश्यक है, और यह कार्य सम्यग् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाचा, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यग व्यायाम, सम्यग स्मृति और सम्यक् समाधि---इन आठ सम्यक्तियों द्वारा ही सम्पादन किया जा सकता है । अपने इस मुक्तिमार्ग के अनुपालन में महात्मा बुद्ध ने कोई वर्ण या जातिभेद नहीं माना । उनके उपदेश का जनता में खूब स्वागत हुआ, तथा उनके समय में ही राजाओं तथा धनी मानी लोगों ने भी उसे खूब अपनाया । बुद्धनिर्वाण के दो तीन शताब्दी पश्चात् मौर्य सम्राटअशोक ने अपनी कलिंग-विजय की हिंसा के प्रायश्चित्त स्वरूप क्रमशः बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया और उसका खूब प्रचार भी किया। धीरे धीरे यह धर्म भारत की सीमाओं को पार कर लंका, श्याम, तिब्बत व चीन आदि देशों में भी फैल गया जहां कि वह आजतक सुप्रचलित है ।।
बौद्धधर्म के मुख्य ग्रंथ त्रिपिटक कहलाते हैं, क्योंकि अनुमानत: वे पहले अलग अलग तीन पिटारियों में रखे जाते थे। पहले विनय पिटक में बौद्ध साधुओं के पालने योग्य नियमों का संकलन किया गया है। दूसरे सूत्रपिटक में बुद्ध भगवान और उनके प्रमुख शिष्यों के उपदेशों व आख्यानों का संग्रह किया गया है जो दोधनिकाय, मज्झिमनिकाय, अंगुत्तरनिकाय आदि नामों से प्रसिद्ध है । इसी पिटक के अन्तर्गत खुद्दकनिकाय में वे पांच सौ से अधिक जातक कथाएं पाई जाती है जो संसार के कथासाहित्य में अपनी प्राचीनता, नैतिकता, चातुरी आदि गुणों के लिये सुप्रसिद्ध है। तीसरे अभिधम्म पिटक में बौद्धधर्म के सिद्धान्तों का संग्रह पाया जाता है। यह सब साहित्य पाली भाषा में है और उसका जो संस्करण हमें इस समय उपलब्ध है वह लंका द्वीप से आया है। यह बौद्धधर्म के 'हीनयान' सम्प्रदाय का साहित्य माना जाता है। महायान सम्प्रदाय उत्तर में काश्मीर, तिब्बत तथा मध्यएशिया की ओर फैला और उसने अपना साहित्य संस्कृत में तैयार किया। किन्तु इस में पूरा त्रिपिटक नहीं मिलता। अनेक बौद्ध ग्रंथ ऐसे भी हैं जिनके तिब्बती व चीनी अनुवाद मिलते है, किन्तु उनकी भारतीय मूल स्चनाओं का
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