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चतुस्त्रिंशःस्तम्भः। दिकोशोंमें भी ऐसेंही आर्यदेश कहा है. ऐसे अनार्य आर्य सर्व देश मिलाके बत्तीस हजार (३२०००) देश जिसमें वास करते हैं, तिसको जैनमतमें भरतखंड कहा है; नतु हिंदुस्तानमात्रको.। ऐसे पूर्वोक्त भरतखंडकी भूमिपर बहुत जगोंपर समुद्रका पाणी फिरनेसें खुली भूमि थोडी रह गइ है; यह बात जैन ग्रंथोंसें, और परमतके ग्रंथोंसें भी सिद्ध होती है. और अनुमानसें भी कितनेक बुद्धिमान सिद्ध करते हैं. जैसें सन १८९२ सपटेंबर मास तारीख ५ को 'नवमी ओरीएंटल कांग्रेस' (NINTH OR ENTAL CONGRESS) जो लंडनशहरमें भरी थी, तिसमें पंडित मोक्षमुल्लरने अपने भाषणमें ऐसा सिद्ध करा है कि, एसीयासें लेके अमेरिकातांइ किसीसमयमें समुद्रका पानी बीचमें नही था; किंतु केवल एकही भूमिका सपाट थी. पीछे समुद्रके जलके आजानेसें बीचमें देशोंके टापु बन गए हैं. और ईसा (इसु खीस्तसे) पहिले १५०००, तथा २००००, वर्षके लगभग सामान्य भाषाके बोलनेवाले प्राचीन लोक, पृथिवीके किसी भागमें वसते थे.* तथा डॉक्टर बुल्हर साहिबने अपने भाषणमें जैन लोकोंके संबंधमें एक निबंध वांचके सुनाया था कि, जैनलोकोंकी शिल्प विद्या कितनेक दरजे (कितनीक वाबतोंमें ) बुद्ध लोकोंकी शिल्पविद्याके साथ मिलती आती हैं, तो भी, जैन लोकोंने, वे सर्व बुद्धलोकोंके पाससें नहीं ली है। किंतु वो विद्या, जैन लोकोंके घरकीही है, ऐसा सबूत कर दीया था. यह समाचार, गुजराती पत्रके १३ मे पुस्तकके अकटोबर सन १८९२ के ४० मे और ४१ मे अंकमें है. यह यहां प्रसंगसें लिखा है. इसवास्ते चीन, रूस, अमेरिकादि सर्व भरतखंडमेंही जानने. ॥ पूर्वोक्त साढेपञ्चीस आर्यदेशोंको, जैनमतमें क्षेत्र आर्य कहते हैं.
प्रश्नः-यदि क्षेत्रकी अपेक्षा येह २५॥ देश आर्य है, और शेष ३१९७४॥ देश अनार्य है तो, क्या आर्य अन्य तरेके भी है, जिसवास्ते इनको क्षेत्रापेक्षा आर्य कहते हो ?
* इस कथनसें जो इसाइ लोक मानते हैं कि, इस पृथिवीके रचेको, वा मनुष्य रचेको छ सहस्त्र (६०००) वर्ष हुए हैं, सो मिथ्या ठहरता है.
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