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त्रयस्त्रिंशः स्तम्भः ।
मालियकयंबकणयारियं पयासोयबउलतिल एहिं ॥ मंदारणायचंपय पउमुप्पलसिंदुवारेहिं ॥ ७ ॥ कणवीरमल्लियाई कचणारमय कुंद किंकराएहिं || सुरवणजजुहियापारिजारुवणढगरेहिं ॥ ८ ॥ सोवण्णरुवमेहि यमुत्तादामेहि बहुवियप्पेहिं ॥ जिणपयसंकयजुयलं पूजिज्ज सुरिंदसयमहियं ॥ ९ ॥ दहिदुद्धसप्पिमिस्सेहि कमलमत्तएहिं बहुप्पयारेहिं ॥ तेवडिवंजणेहि य बहुविहपक्कणएहिं ॥ १० ॥ रूप्पसुवण्णकंसाइथालणिहिएहिं विविहभरिएहिं ॥ पूयं वित्थारिजा भत्तिए जिणंदपयपुरओ ॥ ११ ॥ दीवेहि णिय हो हामियक्कते एहिं धूमरहिएहि ॥ मंदमंदाणिलवसेण णचंतहिं अच्चणं कुजा ॥ १२ ॥ घणपडलकम्मणिचयव दूरमवसारियंधयारेहिं || जिणचलणकमलपुरओ कुणिज रयणं सुभत्तिए ॥ १३ ॥ कालायरुणह चंद णकप्पूरसिल्हारसाइदवेहि || णिप्पण्णधूमवत्तिहि परिमलापंतियालीहिं ॥ १४ ॥ उग्गसिहादेसिएहि सग्गमोक्खमग्गहि बहुलधूमेहि ॥ धुविज्ज जिणिंद पायारविंदजुयलं सुरिंदणुयं ॥ १५ ॥ जंबीरमोयदाडिमकवित्थपणसूयनालिएरेहिं ॥ हिंतालतालखज्जुरबिंबणारंगचारेहिं ॥ १६ ॥ पुइफलतिं दुआमलयजंबूबिल्याइ सुरहिमिट्ठेहिं ॥ जिणपयपुरओ रयणं फलेहि कुज्जा सुपक्केहिं ॥ १७ ॥ अविमंगलाणि य बहुविहपूजोवयरणदवाणि ॥ धूवदहणाइ तहा जिणपूयत्थं वितीरिजइ ॥ १८ ॥
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