________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
५९६
तत्त्वनिर्णयप्रासादतथा षड्विधपूजाप्रकरणमें ऐसें लिखा है. ॥
एवं काऊण रओ खुहियसमुद्दोव गजमाणेहिं ॥ वरभेरीकरडकाहलजयघंटासंखणिवहेहिं ॥ १॥ गुलगुलंति तिविलेहिं कंसतालेहिं झमझमंतेहिं॥ धुमंतफडहमद्दलहुडकमुखेहिं विविहेहिं ॥ २॥ चिठेज जिणगुणारोवणं कुणंतो जिणंदपडिबिंबे ॥ इट्ठविलग्गसुदएइ चंदणतिलयं तओ दिज्जइ ॥१॥ सवावयवेसु पुणो मंत्तण्णासं कुणिज पडिमाए ॥ विविहच्चणं च कुजा कुसुमहिं बहुप्पयारेहिं ॥ २ ॥ वलिवत्तिएहिं जुवारेहिय सिहत्थपण्णरुक्खेहिं ॥ पुव्वुत्तुवयरणेहि य रइज पूर्व सविहवेण ॥ १॥ गहिऊण सिसिरकरकिरणणियरधवलरयणभिंगारं ॥ मोत्तिपवालमरगयसुवण्णमणिखचियवरकंठं ॥१॥ सुयवुत्तकुसुमकुवलयरजपिंजरसुरहिविमलजलभारियं ॥ जिणचलणकमलपुरओ खेविजउ तिण्णधाराओ ॥२॥ कप्पूरकुंकुमायरुतरुक्कमिस्सेण चंदणरसेण ॥ वरबहुलपरिमलामोयवासियासासमूहेण ॥ ३॥ वासाणुमग्गसंपत्तामयमत्तालिरावमुहलेणं ॥ सुरमउडघडियचलणं भत्तिए समल्लहिज जिणं ॥४॥ ससिकंतखंडविमलेहि विमलजलोहं सित्तअइसुअंधेहिं । जिणपडिमपइट्ठिए जिय विसुद्धपुण्णंकुरेहिं च ॥५॥ वरकलमसालितंदुलचणिहसुछंडियदीहसयलेहिं ॥ मणुयसुरासुरमहियं पूजिज जिणिंदपयजुयलं ॥६॥
For Private And Personal