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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
मेहनत करके लेप करते हैं, परंतु लेपकार मांसादिके सेवनेवाले होनेसें सो पत्रिकेविषे जलदी भूमिऊपर गिर पडता है, जिससे लेपकारादि बहुत कदर्थनाको प्राप्त होते हैं. कितनेहीवार ऐसें करते रहें, परंतु लेप ठहरता नही है, और राजादि खेदको प्राप्त हुए; तब बुद्धिमान् एक लेपकारने तिस जिनेंद्रकी दिव्यप्रतिमाको देवताधिष्ठित जानके, जबतक कार्यसिद्धि न होवे, तबतक अर्थात् तितने कालका मांसादि नही खानेका मुनिके पाससें नियम लेके, तिस प्रतिमाके ऊपर लेप करा; तब सो लेप ठहर गया. ऐसें व्रतशालि प्राणियोंको कार्यसिद्धि होवे हैं. तब वसुपाल राजाने परमहर्षसें अनेक प्रकारके वस्त्रसुवर्णादिकों करके तिस लेपकारका पूजन करा.
नंदीकृत प्रतिष्ठापाठ में ऐसें लिखा है. ॥ कर्पूरैलालवं गादिद्रव्यमिश्रितचंदनैः ॥ सौगंधवासिताशेषदिङ्मुखैश्चर्च्चयेजिनम् ॥ १ ॥
भावार्थ:- गंधकरके वासित करी है संपूर्ण दिशायें जिनोंने, ऐसें कर्पूर, एलाफल ( इलायची ), लवंग, आदि द्रव्योंकरके मिश्रित चंदनसें जिनको चच अर्थात् लेप करें.
तथा धर्मकीर्त्तिकृत नंदीश्वरस्थ जिनबिंबकी पूजा में ऐसे लिखा है. ॥
कर्पूरकुंकुमरसेन सुचंदनेन येजैनपादयुगलं परिलेपयंति ॥
तिष्ठति ते भविजनाः सुसुगंधगंधादिव्यांगनापरिवृताः सततं वसंति ॥ १ ॥
भावार्थ:- जे भव्यप्राणि कर्पूरकुंकुमके रसकरी, और भले चंदनकरके, जिनपादयुगलको लेप करते हैं, वे भविजन सुसुगंध शरीरवाले होके, दिव्यरूपवाली देवांगनाओंके साथ परिवरे हुए निरंतर सागरोंतक बसते हैं.
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