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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्वनिर्णयप्रासादबिमार हुए दवाइ आदि करते हैं, पर्युषणादिकोंमें मोदकादिकी प्राभवना करते हैं, तपस्या करनेवालेको पारणा कराते हैं, इत्यादि अनेक कामोंमें हजारों द्रव्य खरचते हैं; और फिर कहते हैं कि, यह तो संसार खाता हे वाहरे वाह ! ! ! बछडेके भाइयोंने बहुतही ज्ञान संपादन करा ! प्रश्नः-भगवंतकी प्रतिमाके शरीरमें अन्यवस्तु कुछ भी जडनी न चाहिये, निःकेवल जिस दल, वा धातुकी प्रतिमा होवे, सोही होना चाहिये. उत्तरः-तुम्हारे मतकी द्रव्यसंग्रहकी वृत्तिमेंही लिखा है कि, जिनप्रतिमाका उपगृहन (आलिंगन) जिनदासनामा श्रावकने करा. और पार्श्वनाथकी प्रतिमाको लगा हुआ रत्न, माया ब्रह्माचारीने अपहरण कराचुराया. तथा च तत्पाठः॥ “॥मायाब्रह्मचारिणा पार्श्वभट्टारकप्रतिमालग्नरत्नहरणं कृतमिति॥" प्रश्रः-जिनप्रतिमाके किसी भी अंगमें चंदनादि सुगंधका लेपन, न करना चाहिये. उत्तरः-तुह्मारे मतके भावसग्रहमें जिनप्रतिमाके चरणोंमें चंदनका सुगंध लेपन करना लिखा है. - तथाहि । गाथा ॥ चंदणसुअंधलेओ जिणवरचलणेसु कुणइ जो भविओ॥ लहइ तणु विक्किरियं सहावससुअंधयं विमलं ॥१॥ भावार्थ:-जिनवरके चरणोंमें जो भव्यजीव चंदनसुगंधका लेप करे, सो स्वाभाविक सुगंधसहित निर्मल वैक्रिय शरीर पामे, अर्थात् देवता होवे. ॥ तथा पद्मनंदिकृत अष्टकमें लिखा है. यतः॥ “॥ कर्परचंदनमितीव मयार्पितं सत् त्वत्पादपंकजसमाश्रयणं करोतीत्यादि ॥" For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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