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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रिंशस्तम्भः। ४७५ “॥ॐ अहं अर्हद्भक्ताष्टनवत्युत्तरशतदेवजातयः सदेव्यः पूजां प्रतिच्छंतु सुपूजिताः संतु सानुग्रहाः संतु तुष्टिदाः संतु पुष्टिदाः संतु मांगल्यदाः संतु महोत्सवदाः संतु॥” ऐसें कहके जिनपादाग्रे अंजलिक्षेप करे. ॥ ___ तदपीछे अंजलिके अग्रभागमें पुष्प धारण करके अर्हन्मंत्र स्मरण करके तिस फूलसें जिनप्रतिमाको पूजे। अर्हन्मंत्रो यथा ॥ “॥ॐ अहँ नमो अरहंताणं ॐ अहं नमो सयंसंबुद्धाणं ॐ अहँ नमो पारगयाणं ॥" यह त्रिपद मंत्र श्रीमत् अर्हन् भगवंतोंके आगे नित्य स्मरण करे. कैसा है मंत्र? भोगदेवलोकादि सुख और मोक्षका देनेवाला है. तथा सर्व पापोंका नाश करनेवाला है. । विशेष इतना है कि, यह मंत्र अपवित्र पुरुषोंने, अन्यचित्तवाले अर्थात् उपयोगरहित पुरुषोंने, नही स्मरण करना. तथा सखर अर्थात् उच्चशब्दसे नही स्मरण करना, नास्तिकोंको नही सुनावना, और मिथ्यादृष्टियोंको भी नहीं सुनावना. । यह पूर्वोक्त अर्हन्मंत्र एकसौआठ (१०८) वार, वा तदर्द्ध अर्थात् ५४ वार जपे. ॥ तदपीछे दो पात्रोंकरके नैवेद्य ढोकन करे. पीछे एक पात्रमें जलका चुलुक लेके । ॐ अर्ह । नानाषड्रससंपूर्ण नैवेद्यं सर्वमुत्तमं ॥ जिनाग्रे ढौकितं सर्वसंपदे मम जायतां ॥१॥ यह पढके एकत्र नैवेद्यमें चुलुकक्षेप करे. । फिर दूसरा जलचुलुक लेके। “॥ ॐ सर्वे गणेशक्षेत्रपालाद्याः सर्वेग्रहाः सर्वे दिक्पालाः सर्वेऽस्मत्पूर्वजोद्भवादेवाः सर्वे अष्टनवत्युत्तरशतं देवजातयः सदेव्योऽर्हद्भक्ताः अनेन नैवेद्येन संतर्पिताः संतु सानुग्रहाः संतु तुष्टिदाः संतु पुष्टिदाः संतु मांगल्यदाः संतु महो For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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