________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
त्रिंशस्तम्भः।
४७१ ऐसें पंढके दशों दिशायोंमें गंध, जल, अक्षतादि क्षेप करना. तदपीछे। शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवंतु भूतगणाः ॥ दोषा प्रयांतु नाशं सर्वत्र सुखीत्रवंतु लोकाः ॥१॥ सर्वेपि संतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः ॥
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्दुःखभाग् भवेत्॥२॥ यह आर्या और अनुष्टुप् छंद पढने । तदपीछे। "॥ ॐ भूतधात्री पवित्रास्तु अधिवासितास्तु सुप्रोषितास्तु ॥" ऐसें पढके प्रथम लीपी हुई भूमिमें जलसें प्रोक्षण (सेचन) करे. । तदपीछे। ___“ ॥ ॐ स्थिराय शाश्वताय निश्चलाय पीठाय नमः॥"
ऐसें पढके धोयके चंदनसें लेपन करके स्वस्तिक करके अंकित (चिन्हित ) ऐसा पूजापट्टस्थालादि स्थापन करे, और चैत्यमें तो स्थिरविव होनेसें इन दोनों मंत्रोंकरी तिसके भूमिजलपट्टादिकोंको अधिवासन करने ।
तदपीछे। “॥ॐअत्र क्षेत्रे अत्र काले नामाहतो रूपाहतो द्रव्याहतो भावार्हतः समागताः सुस्थिताः सुनिष्ठिताः सुप्र तिष्ठिताः संतु॥" ऐसें पढके अर्हत् प्रतिमाको स्थापन करे निश्चलविंबके हुए, चरण अधिवासन करे.॥ तदपीछे अंजलिके अग्रभागमें पुष्प लेके। “॥ॐ नमोहद्यः सिद्धेयस्तीर्णेभ्यस्तारकेभ्यो बुद्धेभ्यो बोधकेभ्यः सर्वजंतुहितेभ्यः इह कल्पनबिंबे भगवंतोर्हतः सुप्रतिष्ठिताः संतु॥"
For Private And Personal