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પષ્ટ
तत्त्वनिर्णयप्रासादमोअगाणं । ८। सव्वन्नूणं सव्वदरिसिणं सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावितिसिद्धिगइनामधेयंठाणं. संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं । ९॥” यह तीसरी वाचना ॥३॥ “॥ जे अ अईआ सिद्धाजे अ भविस्संतिणागए काले॥
संपइ अ वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥” इस अंतिमगाथाकी वाचना भी, तीसरी वाचनाके साथही देनी. ॥ इतिशकस्तवोपधानम् ॥ ३॥
अथ चैत्यस्तवका उपधान कहते हैं. ॥ नंदिआदिपूर्ववत्. । प्रथम दिने एक भक्त, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एक भक्त; तदपीछे श्रेणिकरके लगतमार तीन आचाम्ल करने. अंतमें तीनोंही अध्ययनोंकी समकालं एकही साथ एक वाचना देनी. ॥ यथा ॥ “॥ अरिहंतचेइआणं करोमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए सकारवत्तिआए सम्माणवत्तिआए बोहिलाभवत्तिआए निरुवसग्गवत्तिआए । १ । सदाए मेहाए धीईए धारणाए अणुप्पेहाए वढमाणीए ठामिकाउस्सग्गं ।२। अन्नथ्थउससिएणं-यावत्-चोसिरामि । ३॥" यह एकही वाचना है. ॥ इति चैत्यस्तवोपधानम् ॥ ४ ॥
अथ चतुर्विंशतिस्तवका उपधान कहते हैं. ॥ नदि, दो पूर्ववत् । प्रथम दिने एकभक्त, दूसरे दिन उपवास, तीसरे दिन एकभक्त, चौथे दिन उपवास, पांचमे दिन एकभक्त, छठे दिन उपवास, सातमे दिन एकभक्त.। ऐसें अष्टम तप । अंतमें प्रथम गाथाकी एक वाचना.॥
पानम् ॥ ४॥
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