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अष्टाविंशस्तम्भः। पंचुंबरि चउ विगई हिम विस करगे अ सवमट्टी अ॥ राईभोयणगं चिय बहुबीअ अणंत संधाणा ॥ २२ ॥ घोलवडा वायंगण अमुणिअनामाइं पुप्फफलयाई॥ तुच्छफलं चलिअरसं वज्जे वज्जाणि बावीसं ॥२३॥ एआई मुत्तूणं अन्नाण फलाण पुप्फपत्ताणं ॥ एआई एआइं पाणंतेवि हु न भक्खेमि ॥२४॥ इत्तिअमित्तअणंते फासुअरईएण होउ मे जयणा ॥ इत्तिअफले अपके अखंडिएवि हु न भक्खमि ॥ २५॥ आजम्मं सच्चित्ता इतिअमित्ता य भक्खणिज्जा मे ॥ इत्तिअमित्ता दवा वंजणधिअदुद्वदहिपभिई ॥२६॥ इत्तिआमित्ता विगई इत्तिअमित्ता य मे पइत्ताणा ॥ इत्तिअमित्ता गयतुरयरहवरा इंतु जयणा मे ॥२७॥ इत्तिअमित्ता पूगा इत्तिअमित्ता लवंग पत्ता य॥ एला जाइफलाइ अ मह निच्चं इत्तिअपमाणा ॥२८॥ चउविहवत्थाणंपि अ इत्तिअमत्ताण मज्झ परिहाणं ॥ इअजाई इअसंखा पुप्फाणं अंगभोगे मे ॥२९॥ आसंदी सीहासण पीढय पट्टा य चउक्किआओ अ॥ इत्तिआमित्ता पल्लंक तूलिया खट्टमाईओ॥३०॥ कप्पूरागरुकच्छूरिआओ सिरिहंडकुंकुमाई अ॥ इत्तिअमित्ता मह अंगलेवणे पूयणे जयणा ॥३१॥ इत्तिअमित्ता नारीओ मज्झ संभोगमित्तिअं कालं॥ इत्तिअघडेहि पूएहि फासुएहिं च मे न्हाणं ॥३२॥ इत्तिअवारा इत्तिअतिल्लेहिं इत्तिअप्पयारेहिं ॥ इत्तिअमित्तं भत्तं इत्तिअवाराई भुंजामि ॥३३॥
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