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चतुर्विशस्तम्भः। शिखावर्जके मुंडन करवावे, तदपीछे तिसको तीर्थोदक मंत्रोंकरके मंत्रित जलकरके स्नान करवावे.। तीर्थोदकाभिमंत्रणमंत्रोयथा ॥ “॥ॐ वं वरुणोसि वारुणमसि गांगमसि यामुनमसि गौदावरमसि नार्मदमास पौष्करमसि सारस्वतमास शातद्रवमसि वैपाशमसि सैंधवमास चांद्रभागमसि वैतस्तमसि ऐरावतमसि कावेरमसि कारतोयमसि गौमतमसि शैतमसि शैतोदमसि रोहितमास रोहितांशमसि सारेयवमसि हारिकांतमास हारिसलिलमास नारिकांतमसि नारकांतमसि रौप्यकूलमसि सौवर्णकूलमसि सालिलमसि रक्तवतमसि नैमनसलिलमसि उन्मन्नसलिलमसि पाद्ममास महापाद्ममसि तैगिच्छमसि केशरमसि जीवनमसि पवित्रमसि पावनमास तदमुं पवित्रय कुलाचाररहितमपि देहिनं ॥" इस मंत्रसे कुशाग्रकरी सात वार अभिसिंचन करे. पीछे नदीकाठे वा तीर्थऊपर, वा मंदिरमें, वा पवित्र गृहस्थानमें तिस बटूकरण योग्यको, प्रथम तीनगुणी कुशमेखला, तीन प्रकारसे बांधे। मेखलाबंधमंत्रो यथा ॥ "॥ॐ पवित्रोसि प्राचीनोसि नवीनोसि सुगमोसि अजोसि शुद्धजन्मासि तदमुं देहिनं धृतव्रतमव्रतं वा पावय पुनीहि अब्राह्मणमपि ब्राह्मणं कुरु ॥" इस मंत्रका तीन वार पाठ करे. ॥ पीछे कौपीन पहिरावे. । कौपीनमंत्रो यथा॥ . ___ ॐ अब्रह्मचर्यगुप्तोपि ब्रह्मचर्यधरोपि वा ॥
व्रतः कौपीनबंधेन ब्रह्मचारी निगद्यते ॥१॥ ऐसें तीन वार पढके कौपीन पहिरावणा. । तदपीछे पूर्वोक्त ब्राह्मणसमान उपवीत, मंत्रपूर्वक पहिरावे. ।
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