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द्वाविंशस्तम्भः ।
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गोत्रदेवीकी प्रतिमाके आगे चढावे । तदपीछे कुलदेवीके नैवेद्यमेंसें योग्य आहार मंगलगीत गाते हुए माता पुत्रके मुखमें देवे । और गुरु यह वेदमंत्र पढे. ॥
यथा ॥
“॥ ॐ अर्ह भगवानर्हन् त्रिलोकनाथस्त्रिलोकपूजितः सुधाधारधारितशरीरोपि कावलिकाहारमाहारितवान् । तपस्यन्नपि पारणाविधाविक्षुरसपरमान्नभोजनात् परमानंदादाप केवलं तदेहिन्नौदारिकशरीरमाप्तस्त्वमप्याहारय आहारं तत्ते दीर्घमायुरारोग्यमस्तु अर्ह ॐ ॥
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यह मंत्र तीनवार पढे । तदपीछे साधुयोंको षटूविकृतियांकरके षटूरससंयुक्त आहार देवे, यतिगुरुके मंडलीपट्टोपरि परमान्नपूरित सुवर्णपात्र चढावे, गृहस्थगुरुको द्रोण द्रोण प्रमाण सर्वजातका अन्नदान करे, । तुला २ प्रमाण सर्व घृत, तैल, गुड लवणादि दान करे । सर्वजातके एक सौ आठ २ फल देवे, । तांबेका चरु, कांश्यक थाल, और वस्त्रयुगल देवे. | सर्वजातिके अन्न, सर्वजातिके फल, सर्व विकृतियां, स्वर्ण, रूप्य, ताम्र, कांश्य, इनोंके पात्र (भाजन) इतनी वस्तुयां इस संस्कारमें चाहिये. ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमान सुरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्ध अन्नप्राशनसंस्कार कीर्तननाम नवमोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानंद सूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयमेकविंशस्तम्भः ॥९॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे नवमान्नप्राशनसंस्कारवर्णनो नामैकविंशस्तम्भः ॥ २१ ॥
॥ अथद्वाविंशस्तम्भारम्भः ॥
अथ २२ मे स्तंभमें कर्णवेध संस्कारविधि लिखते हैं. ॥ उत्तरात्रय, हस्त, रोहिणी, रेवती, श्रवण, पुनर्वसू, मृगशीर्ष, पुष्य, इन नक्षत्रों में
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