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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
अन्नभोजन रिक्तादि कुतिथीयां और कुयोगोंको वर्जके श्रेष्ठ है. । पुत्रको छट्ठे मासमें, और कन्या को पांचमे मास में अन्नप्राशन, सत्पुरुषोंने कहा है. । जे नक्षत्र कहे तिनमें और पूर्वोक्त वारमें सग्रहोंके विद्यमान हुए अमावासी और रिक्ता, तिथीको वर्जके शुभ तिथीमें करणा क्योंकि, लग्नमें राव होवे तो, कष्टी होवे; मंगल होवे तो, पित्तरोगी होवे; शनि होवे तो, वातव्याधि होवे क्षीणचंद्र होवे तो भीख मांगनेमें रत होवे; बुध होवे तो, ज्ञानी होवे; शुक्र होवे तो, भोगी होवे; बृहस्पति होवे तो, चिरायु होवे; और पूर्ण चंद्रमा होवे तो, यज्ञ करनेवाला और दान देनेवाला होवे । कंटक ४ । ७ । १० । अंत्य १२ । निधन ८ । त्रिकोण ५ । ९ । इन घरोंमें पूर्वोक्त ग्रह होवे तो, शरीरमें शुभफल देते हैं । छट्टे और आठमे घरमें चंद्रमा अशुभ होता है । केंद्र १।४।७ | १० | त्रिकोण ५ । ९ । इन घरोंमें सूर्य होवे तो, अन्ननाश होवे. ॥ तिसवास्ते छट्टे मासमें बालकको, और पांचमे मासमें कन्याको पूर्वोक्त तिथी वार नक्षत्र योगों में बालकको चंद्रबलके हुए अन्नप्राशनका आरंभ करे । तद्यथा । पूर्वोक्त वेषधारी गुरु, तिसके घरमें जाके सर्वदेशोत्पन्न अन्नको एकत्र करे; देशोत्पन्न और अन्य नगरोंमेंसें जे प्राप्त होवे, तिन सर्व फलोंको, और विक्योंको त्याग करे. । तदपीछे सर्व अन्नोंको, सर्व शाकों को, सर्व विकृतियोंको, घृत, तैल, इक्षुरस, गोरस, जल, इत्यादिकोंसें पकाये हुए बहुतप्रकार के पदार्थोंको पृथक् न्यारे २ करे । तदपीछे अर्हत्प्रतिमाका बृहत्स्नात्रविधिसें * पंचामृतस्नात्र करके पृथक् पात्रोंमें तिन अन्न शाक विकृति पाकादिकोंको जिनप्रतिमाके आगे अर्हत्कल्पोक्त + नैवेद्य मंत्रकरके ढोवे. सर्वजात के फल भी ढोवे । तदपीछे बालकको अर्हतस्नात्रोदक पिलावे. । फिर जिनप्रतिमाके नैवेद्यसें उद्धरित बची हुई तिन सर्ववस्तुयोंको सूरिमंत्रके मध्यगत अमृताश्रवमंत्र करके श्रीगौतमप्रतिमा के आगे ढोवे । तिससें उद्धरित वस्तुयोंको कुलदेवताके मंत्रकरके
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* बृहत्स्नात्रविधि आचारदिनकरके ३३ मे उदयमें है ! + अर्हत्कल्पोक्त पूजाविधि इसीग्रंथके २७ मे स्तंभमें है.
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