________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२६५
दशमस्तम्भः। होनेसें त्रिकालमें हैही नहीं; एकशुद्ध ब्रह्मही था. तो फिर, इंद्रको उद्देश्यके तप काहेको करती थी ? इंद्र भी तो मायाकी भ्रांतिरूपही था; जब अपालाने नदीऊपरसें सोम लेके चर्वण करा, तिसके दांतोंका शब्द सुनके इंद्रने जाना कि, पत्थरोंसें सोमके पीसनेका यह शब्द है; इंद्रको ऐसी भ्रांति हुई-क्या इंद्र महाराज स्वर्गके सुखोंको छोडके तिस जगे भटकता फिरता था ? तथा इंद्रको तो ऋग्वेदादिमें परमेश्वरकाही स्वरूप लिखा है तो, क्या ऐसे ज्ञानवान् इंद्रको अपालाके दांतोंका शब्द पत्थ. रोंका शब्द मालुम हुआ ? इसमें सिद्ध होता है कि, तुमारा माना वेदादिकोंका वक्ता ईश्वर भी ऐसाही ज्ञानवान् होगा.-तथा पत्थरोंसें जगत्में लोक सोमरसही पीसते हैं ? अन्य नहीं? जो सोमही पीसनेका शब्द है, अन्यका नही. तहां यज्ञशाला भी नहीं थी कि, जिससे सोम पीसनेकाही निश्चय होवे.
तथा अपाला ब्राह्मणी कोइ ऊंटणी थी, वा राक्षसणी थी ? कि जिसके दांतोंका शब्द पत्थरोंके शब्दसमान इंद्रको मालुम पडा ! क्या इंद्र भिक्षाचरोंकीतरें घरघरमें सोमरस पीता फिरता था ? और अपाला बडी नालायक थी ? कि जिसने अपने मुखमें चर्वण करी अपने मुखकी लाला और श्लेष्मयुक्त जुगुप्सनीय मलीन ऐंठी चगली हुई सोमकी निमंत्रणा इंद्रको करी ? इंद्र भी क्या तिसविना मरा जाता था ? जिससे पूर्वोक्त चावी हुई लाला थूकयुक्त सोमवाले अपालाके मुखको अपने मुखसे चूसके सोमका सर्व रस पी गया !
वेदांतीसाहबः-तुम नहीं जानते, अपालाने भक्तिसें इंद्रको सोमकी आमंत्रणा करी, और इंद्रने भक्तिवश होके चगला हुआ भी सोमरस पी लीया, इसमें क्या दोष है ?
उत्तर:--तुमारा कोइ भक्त, जो तुमको अत्यंत अच्छी लगती होवे ऐसी मिठाई मुखमें चावके तुमको कहे कि, मेरे मुखसें मुख लगाके तुम यह मिठाइ चूसके पी लो, तो क्या तुम पी लोंगे ? नही. तो इंद्रने किसतरें चगल पी लीनी?
For Private And Personal