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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवमस्तम्भः। રરૂ૭ लोकोंको धारण करता है, इसवास्ते प्रजापति देवकेलिये हम हविःप्रदान करते हैं. [समीक्षा] यह भाष्यकारका अर्थ पूर्वोक्त अर्थोसें विलक्षणही है, तथा यजुर्वेद अध्याय १७ के मंत्रसें भी विरुद्ध है. तथा इसश्रुतिसें मालुम होता है कि, इसका कहनेवाला परमात्मा प्रजापतिसें भिन्न है. क्योंकि, इसमें लिखा है कि, जो हिरण्यगर्भ सृष्टिसे पहिले आप शरीरधारी हुआ, जो उत्पन्न होनेवाले सर्वजगत्का पति हुआ, और तीन लोककों जो धारण करता है, तिस प्रजापतिदेवकेलिये, हम, हविःप्रदान करते हैं, इत्यादि. तथा इसी श्रुतिका अर्थ ऋग्वेद अष्टक ८ अ०७। व०३। मं० १० अ० १०। सू० १२१ में सायणाचार्यने ऐसें लिखा है-हिरण्मय अंडका गर्भभूत जो प्रजापति सो कहावे हिरण्यगर्भ, तथा च तैत्तिरीयकं-“प्रजापतिर्वे हिरण्यगर्भः प्रजापतेरनुरूपत्वायेति।” अथवा हिरण्मय अंड गर्भवत् है उदरमें जिसके, ऐसा जो सूत्रात्मा, सो कहावे हिरण्यगर्भ. सो हिरण्यगर्भ (अग्रे) प्रपंचोत्पत्तिके पहिले (समवर्तत) मायावशसें सृजन करनेकी इच्छावाले परमात्मासे उत्पन्न होता भया. यद्यपि परमात्माही हिरण्यगर्भ है, तो भी, तदुपाधिभूत आकाशादि सूक्ष्मभूतोंको ब्रह्मसें उत्पन्न होनेसें तदुपहित भी उत्पन्न हुआ ऐसें कंहीए हैं. सो हिरण्यगर्भ (जातः) जातमात्रही, उत्पन्न हुआ थकाही ( एकः ) अद्वितीय एकेलाही (भूतस्य ) विकारजात ब्रह्मांडादि सर्वजगत्का (पतिः) ईश्वर (आसीत् ) होता भया. नही केवल पतिही हुआ, किंतु सो हिरण्यगर्भ (पृथिवीं) वीस्तीर्ण ( यां) स्वर्गलोककों ‘उतापिच' और (इमां) हमारे दृश्यमान पुरोवर्तिनी इस भूमिको, अथवा 'पृथिवीं' आकाशको स्वर्गलोकको और भूमिको ( दाधार ) धारयति-धारण करता है (कस्मै) यहां किं शब्द अनितिस्वरूपवाला होनेसें प्रजापतिमें वर्तता है। अथवा सृष्टिकेवास्ते जो कामना करे सो कहावे कः। अथवा कं-सुखं अर्थात् सुखरूप होनेसें कः कहीए हैं। अथवा इंद्रने पूछा हुआ प्रजापति, मेरा महत्व For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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