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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૯૮ तत्वनिर्णयप्रासाद और विष्णुने लक्ष्मी और पुत्र पुत्रीयां साम्राज्य परिग्रहादिकी ममताभी सर्व देवोंके तिनके शास्त्रोंके कथनानुसारही सिद्ध है. और अप्रीतिलक्षणद्वेषभी पूर्वोक्त देवों में सिद्ध है. क्योंकि, जो शस्त्र रखेगा सो यातो वैरीके भयसें अपनी रक्षाकेवास्ते रखेगा, यातो अपने वैरियोंको मारने वास्ते रखेगा; शंकर धनुष, बाण, त्रिशूलादि; और विष्णु चक्र, धनुष बाण, गदादि; और ब्रह्मादि तीनो देवोंने अनेक पुरुषोंकों शाप दिये महाभारतादि ग्रंथों में प्रसिद्ध है; और शंकर विष्णुने अनेक जनोंके साथ युद्ध करे है; इत्यादि अनेक हेतुयोंसें, तीनो देव, द्वेषी सिद्ध होते हैं. और मोह, अज्ञानभी, तीनो देवादिक परतीर्थनाथोंने स्वीकार करा है. क्योंकि, जपमाला रखनेसें अज्ञानी सिद्ध होते है, जपमाला जपकी गिणती वास्ते रखते हैं, जपमालाविना जपकी गिणती (संख्या) न जाननेसें, अज्ञानिपणा सिद्ध है. और महाभारत, रामायण, शिवपुराणादि ग्रंथोंके कथनसें, तीनो देव, अस्मदादिकोंकी तरह अज्ञानी सिद्ध होते हैं. जैसें, शिव लिंगका अंत ब्रह्मा विष्णुकों न मिला, इत्यादि अनेक उदाहरण है. तिससे, तीनो देव अज्ञानी सिद्ध होते हैं. तथा हास्य, रति, अरति, भय, जुगुप्सा, शोक, काम, मिथ्यात्व, निद्रा, अविरति, पांच विघ्नादि दूषणभी, तीनो देवादिकों में तिनके कथन करे शास्त्रोंसेंही सिद्ध होते हैं. इस वास्ते मानं हे जिनेंद्र! तीनो देवोंने तेरी ईर्षा करकेही पूर्वोक्त दूषण अंगीकार करे हैं. यह प्रायः जगत् में प्रसिद्धही है कि, जो निर्द्धन धनाढ्यका स्पर्धी, जब धनाढ्यकी वरावरी नही करसक्ता है, तब धनाढ्य - की ईर्षा विपरीत चलना अंगीकार करता है. तसेही परतीर्थनाथोंने हे भगवन् ! तेरेकों सर्व दूषणोंसें रहित देखके तेरी ईर्षासेंही मानूं सर्व दूषण कृतार्थ करे हैं, यह मेरेकों बडाही आश्चर्य है. ॥ ४ ॥ अथ स्तुतिकार भगवंत में असत् उपदेशकपणे काव्य वछेद करते हैं. यथास्थितं वस्तु दिशन्नधीश न तादृशं कौशलमाश्रितोऽसि ॥ तुरंगशृंगाण्युपपादयद्भ्यो नमः परेभ्यो नवपण्डितेभ्यः॥ ५ ॥ व्याख्या - हे अधीश ! हे जिनेंद्र ! तूं (यथास्थितं) यथास्थित (वस्तु) व For Private And Personal
SR No.020811
Book TitleTattva Nirnayprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages863
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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