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तत्वनिर्णयप्रासाद
।ऋ० अ० १ मं० १ अ०३। प्रथम पांच ऋचामें-शत्रुकों जीतने वास्ते इंद्रकी प्रार्थना, और धनादिका मांगना.
तदनु दश ऋचामें-इंद्रको धनके वास्ते प्रेरणा, हे इंद्र! हमकों धन, गौआं, अन्न संयुक्त कीर्ति, हजारां संख्याका धन, व्रीहि, जव, बहुत रथ सहित अन्न दे! अपने धनकी रक्षा वास्ते हम इंद्रकों बुलाते हैं; स्तुति करते हुए सर्व यजमान इंद्रके सामर्थ्यकी प्रशंसा करते हैं.
तदनु नव ऋचामें-इंद्रकी महिमा, धन, गौआं, दुग्ध दे ! वर्षा प्रेरो! दुग्धवाली गौआं दे ! हमारी स्तुति सुणो! इत्यादि. __ त० २३ ऋ०-हे इंद्र! हम तुजकों जानते हैं, तूं संग्राममे हमारा बुलाना सुणता है, हजारोंका धन देनेवाला है. इत्यादि इंद्रकी स्तुति हमारी स्तुति तुमकों पहुचे. __ त०३ ऋ०-हे इंद्र! तेरे अनुग्रहसे हम शत्रुयांसें भय न पावेंगे, इंद्र धनदाता है.
त० ३ ऋ०-इंद्रके गुणोंका कथन, बल नामक असुर देव संबंधिनी गौआं चुरायके, किसी विलमें गुप्त करी, फिर इंद्र, सैन्य सहित बिलसें निकाल लाया तिसका कथन, और यजमान इंद्रकी स्तुति कर्ता है. त० २ ऋ०-इंद्रने शुष्ण असुरकों मारा, और इंद्रकी स्तुति.
।ऋ० अ० १ मं० १ अ०४। १२ ऋ०-देव दुत, आग्नि, सर्व देवताओंकों बुलानेवाला है, इस यज्ञमें यजमानकी करी आहुति सर्व देवताओंकों पहुचानेवाला है, स्तुति योग्य है. हे अग्ने! तूं देवताओंकों बुलाके इस यज्ञ कर्ममें आके बैठ! तूं हमारे शत्रुयांकों भस्म कर! इत्यादि.
८ ऋ०-अग्नि विशेषका वर्णन. ३ ऋ०-अग्नि विशेषका वर्णन. १०-हे इंद्रादि देवो! तुमारे वास्ते तृप्तिकारिका, सोमा, संपादन करी है.
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