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प्रथमस्तम्भः। इंद्रकों पूछ कि यज्ञ करानेवालेने इंद्रकी स्तुति ठीक करी है, कि नहीं? यह सुण कर इंद्र तेरेको श्रेष्ठ धन पुत्रादि सर्व औरसें देवेगा.
तदनु एक ऋचामें-हमारे ऋत्विज इंद्रकों कहे, हमारे निंदक इस देशमें, तथा अन्य देशोंमें भी न रहे. ____त. एक०-हे इंद्र! तेरे अनुग्रहसे हमारे शत्रु भी मित्रभूत हुए बोलते हैं.
त. तीन०-इंद्रकों सोमवल्लीका रस देवो, जिसकों पीके इंद्र वृत्रनामारि असुर शत्रुयांकों हननेवाला होवे, और संग्राममें, हे इंद्र ! तूं अपने भक्तकी रक्षा करनेवाला हो, हे इंद्र! तेरेकों अन्नवाला करते हैं.
तदन एक ऋचामें-इंद्र धनकी भूमिका रक्षक है, इस वास्ते हे ऋविजो! तुम इंद्रकी स्तुति करो.
त० एक०-हे ऋत्विजो! शीघ्र इस कर्ममें आवो! आवो! आ कर बैठो; बैठ कर इंद्रकी स्तुति करो.
त. एक०-हे ऋत्विजो! तुम सर्व एकठे होकर इंद्रकों गावो.
त० एक०-पूर्व मंत्रोक्त गुणवाला इंद्र हमकों पूर्व अप्राप्त पुरुषार्थकों प्राप्त करो! और, सोइ इंद्र धन, स्त्री, अथवा बहुत प्रकारकी बुद्धियांकों सिद्ध करो.
त० नव०-इंद्रके रथ घोडोंका कथन, और इंद्रकी प्रार्थना. त० एक०-इंद्रही आग्नि, वायु, सूर्य, नक्षत्रके रूपसें रहा हुआ है. त० एक०-इंद्रके घोडे रथका वर्णन. त० एक०-सूर्यका वर्णन.
त० पांच०-मरुतका वर्णन, पणि नामक असुरोंने स्वर्गसें गौआं चुरायके अंधकारमें छिपा रखी. पीछे इंद्र मरुतोंके साथ तिनकों जीतता हुआ, इंद्र मरुतकी स्तुति, और आमंत्रण.
त० एक०-इंद्र आकाशादिकोंसें ल्याके हमकों धन देवो. त० नव०-इंद्रकी अनेक रूपसें स्तुति.
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