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कालिकाचार्यकथा । तो सह लाडाइनिवेहि, तेहिं मालवयसंधिरणमग्गो । नासिय उज्जेणिगओ, संरुद्धो गल्लिनिको ॥३८॥ फसिणटमीइ तेणहमेण अह सुमरिआमयं विज । रासहिरुवं मुन्ने, कुटेऽटालयडियं दटुं ॥३९॥ ओसारियसयलबले, दुकोसमढसयसदलहुवेही । भणिया गुरुणा बाणेहिमीइ मरह मुहमकयसरं ॥४०॥ सुम्भे वि नत्यि अन्नह, जमिमीइ सरं सुणेइ जोऽरिषले । तिरिओ नरो स तुरियं, पडइ वमंतो मुहे रुहिरं ॥४१॥ तेहिं तहा पटिहया, नीइदुगं काउ दत्तलत्तनिवे । विज्जा गयाऽह "तेहि उ, निग्गहिओ गद्दहिल्लनिवो ॥४२॥ जप्पासे सूरिठिमओ, सऽवंतिपहु आसि सेवगा सेसा । अन्ने भणंति गुरुणो, भाणिज्जा सेविया तेहिं ॥४३॥ जं भणिओ निवपुरओ, स गओ तेहि सह मूरिणो अ सगो। सगकूल आगयत्ति य, सेंगु ति तो आसि तव्वंसो ॥४४॥ पुण संजमम्मि भइणि, ठविउं. पच्छित्तदाणओ सूरी । नियगच्छजुओ हिरह, महीइ उज्जअपिहारेण ॥४५॥ कालयसूरिचरितं, तित्युनयकारि चिचमिइ वुत्तं । जह जाया पम्जुसवणा, चउथीइ भणामि तह अहुणा ॥४६॥
(२) घनमित्त-भाणुमित्ता, आसि अवंतीइ राय-जुवराया । विति परे भरुअच्छे, कालयसूरी वि तत्य गओ ॥४७॥ दिक्खइ भाणुसिरिमुअं, बलभाणु सो तया अपुच्छाए । सभइणिसुअ निवषलमित्त भाणुमित्ताण माणिज्जं ॥४८॥ तह कुणइ धम्मखिसिरमुत्तररहियं पुरोहिगंगधरं । गुरुभत्तिपरो कवडेण, तो निवं भणइ स पउट्ठो ॥४९॥ देव ! इमे जइपुज्जा, भमंति जहिं तत्थ गछिरम्मि जणे ।
गुरुपयअकमणकया, होइ अवन्ना दुरियहेज ॥५०॥ उक्तं च--
यत्र देवर्षिपूजादे:, क्रियतेऽतिक्रमः क्सविद ।
तचेत् संसहते राजा, घोरं तत्र मयं भवेत् ॥५१॥ " तेहिं व, नि . P I मनो त्ति PM
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