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मलधारिश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचिता (३६) सव्वमणिचं धम्मो, निचो ति स आह जाव तो सूरी।
जंपइ न अत्यि धम्मो, न गिज्झए जपमाणेहिं ॥११०॥ (३७) मुकुलाइकज्जउ चिय, तेणं धम्मो पयहिउ इत्तो ।
सरि अपिच्छमाणा, ते दुस्सीसा य पुच्छंति ॥११॥ सिज्जायरं इमेण वि, बहुहा निभच्छिया तओ तेहिं ।
सव्वं खमाविउं सो, सब्भावं कहिय तेणंते ॥११२॥ (३९) पहविया तत्थ तओ, गच्छंति जणो य पुच्छए एस ।
को गच्छइ ति तो ते, मणंति जह कालगायरिया ॥१३॥ (४०) सागरचंदेण सुयं, लोयमुहाओ पियामहागमणं ।
तत्तो पुढो थेरो, पियामहो मे किमायाइ ? ॥११४॥ (४१) तेणुत्तं इय सुव्वइ, अनम्मि दिणम्मि तयणुमग्गेण ।
संपत्तं मुणिविंदं, अब्भुट्टइ सागरमणिदो ॥११५॥ (४२) तेहि भणियं तुम्भे, उवविसह मुणी इमे मओ पुरओ।
गुरुणो समागया सूत्ररिणा वि भणियं न को वि इहं ॥११६॥ (४३) आयाओ पोत्तूणं, थेरं इत्यंतरम्मि आयाया ।
तं मुणियाओ(?) कालयसूरी पाहुणयसाहूहिं ॥११७॥ (४४) अब्भुढिया तो सो, सागरचंदो खमावए सूरि ।
झुरंतो य स गुरुणा, भणिओ नो भावदोसो ति ॥११८॥ (४५) किंतु पमायस्स विबोहणट्ठमेयस्स अन्नया सूरी।
दसइ वालयपत्थयदिळेंतं तहय कहियमिणं ॥११९॥ आस[ध्वन्नुपयाओ, तरतमभावेण मइविहवा ।
मा वह]उ को वि गव्वं, अहमिको पंडिओ इत्य ॥१२०॥ (४७) इय अच्छेरय चरिओ, गामागरनगर[मंडियं वसुहं ।
आणावदिच्छबहुसिस्सपरिवुडो विहरई मय]वे ॥१२१॥
(४८) अह अन्नया सुरिंदो, वंदइ सीमंधरं जिणवरिंदं ।
मुणिउ निगोयजीवे स वि.................... ॥१२२॥ ........................................मिओ इमे कोइ । जाणइ वक्खाणेउ कालयसूरि त्ति इय कहइ ॥१२३॥ . . . . . . या तेणं सको पुच्छइ मे कित्तियं आउ ।
उवउत्तेणं दोसागाराईमाऊणमाउयं ..... ॥१२४॥ (५१) ... चिय कालेणं जाणित्ता, निययआउपरिमाणं । संछेहणं विहे अणसणवि[हिणा दिवं पत्ता].॥१२५॥
॥3॥ श्लोक १६४ ॥ मंगलं ॥3॥
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