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कालिकाचार्यकथा । साहइ गइभिविज, कत्यइ अट्टालगम्मि तो ठवियं । जोएह रासहिं तह, कए य दिट्ठा य सा तेहिं ॥५४॥ तो भणियं सूरीहि, एसा किर जावपरिसमत्तीए । मुंचिहिई महासदं, तो य परसेन्नमज्झम्मि ॥५५॥ दुपयं चउप्पयं वा, जं किचि वि तं सुणेइ तं प्रति । रुहिरं समुग्गिरंतं, मुहेण निवडेइ धरणीए ॥५६।। तमा सजीवदुपयं, चउप्पयं वा दुगाउयपरेण । नेउं ठवेह सव्वं, मज्झ समीवम्मि अइनिउणं ॥५७।। मुंचह धणुद्धराणं, अट्ठहियसयं च सहवेहीणं । तह चेव कए तेहिं, धणुद्धरे भणइ तो सूरी ॥५८|| एयाए रासहीऍ, निवाइयं चेव वयणमकयसरं । नारायाण भरिजह, अपमत्ता हारियं इहरा ॥५९॥ तह चेव कयमिमेहिं, न निग्गओ रासहीए तो सहो । पडिहयसत्ति त्ति तओ, तस्सेव य उवरि नरवइणो ॥६०॥ मुत्त-पुरीसे मोत्तुं, पलाइ सा गया महाविज्जा । तो भणियं सूरीहिं, एदहमित्तं बलमिमस्स ॥६१॥ इय तं पि विणिग्गहियं, तो बीसत्था करेह नियकज्ज । अह तेहिं पुरी भग्गा, राया वि हु बंधिउं गहिओ ॥६२॥ तो" भणिओ सूरीहि, रे पाव ! हढेण तीऍ समणीए । जं चुक्कोऽसि अलज्जिर !, इह-परभवदुनिरवेक्ख ॥६३॥ तित्ययराण वि पुज्जो, अणज्ज ! आसाइओ य जं संघो । तस्सावराहतरुणो, पत्तो कुमुमुग्गमो तुमए ॥६४॥ जं पुण अणंतभवसायरम्मि भमिहसि अणेयदुहभीमे । तं भुंजिहिसि फलं पि हु, ता अज्ज वि गिव्ह जिणदिक्खं ॥६५॥ पीवाई कि पि निरसि जेण इच्चाइ जाव करुणाए । पभणइ सूरी दुम्मिज्जए, निवो ताव अहिययरं ॥६६॥ तो सूरी भणइ तर्हि, समुवज्जियगरुयदुसहभवदुक्खा । तुम्हारिसा वि को सोक्खभायणं सकइ विहेउं ? ॥६७॥ जीवदयामूलो चिय, धम्मो अम्हाण तेण न होसि ।
इच्चाइ बहुं निभच्छिऊण मोयाविओ एसो ॥६८॥ ३. तो चहिउं C1, तो ठविउ P। ३८ मुच्चिइही P1, मुंचिही MI ३९ ता म • P। ४. • गिय सू. CP | ४१ वेक्खो MDI ४२ •ओ तए संघो MI ४३ पावाउ M I, पावाई P। ४४ •सि भिवपन्वज्जाए मा • MI ४५ को मोक्ख • P। ४६ भत्यिक • MI
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