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श्रीअज्ञातसूरिविरचिता
ते साहानुसाहिनई कुणिहिं अम्हारयं वयरीई चाडी कीधी । तेणिइं करीय तु कोप हूउ । मझनई लेख मोकलिउ छइ । आपणु मस्तक मोकले जिम ताहरउ बेटउ राज्य पालइ । नहीतरि समर्थ थई रहिजे । एहवु आदेश आविउ छइ । जु मस्तक मोकलीइ तु कुटंब परिवार सूत्र रहइ नहीतरि कुल क्षय हुइ । एहवु आदेश मझ पूठिइ पंचाणं रायनई एहवु जि आदेश आविउ छइ । तेणिई करी जीवतव्य जातइ कालमुख थिया छईह ॥ २८ ॥
एकत्र सर्वे सबलं मिलित्वा, हिन्दुफदेशं चलताशु यूयम् ।
गुरोनिदेशादिति तैः प्रहृष्टै पैः प्रयाणं पटिति पदत्तम् ॥२९॥ गुरे स(सा)हि राजानूं वचन सांभली वलतुं कहीउं । तम्हो छन्नूं राय एकठा मिलीनई हिंदूना देस मोटा छह तेह भणी नई तम्हो चाल । तिहां तम्यो(म्हो) ते देस लेई समाधिई राज्या पालु । ते वचन सांभली गुरुना वचननी प्रतीति चत्ति आणी । सघलाइ एकठा कटक सहित मिलीनई पीयाणुं दी● ॥२९॥
उत्तीर्य सिन्धुं कटकं सुराष्टादेशे समागत्य मुखेन तस्थौ ।
सर्वऽपि भूपाः मुगुरोश्च सेवां, कुर्वन्ति बद्धाञ्जलयो विनीताः ॥३०॥ तेह साहिनां कटक सिंधुनदी ऊतरीनई सुराष्ट्रदेश सोरठमाहि आवी रहिया । तिसिइ वर्षा लागु । सगलाइ छनं राय श्रीकालिकसूरिने सेवा करई । बिन्हई हाथा जा(जो)डीनई नित्य सेवा करई विनयवंत हुंता ॥३०॥
वर्षावसाने गुरुणा बमाणे, अवन्तिदेशं चलतेति यूयम् ।
नृपं निगृहीत च गर्दभिल्लं, गृहीत राज्यं पविभज्य शीघ्रम् ॥३१॥ वरसातनइ प्रांति छेहडइ श्रीकालिकसूरे साहनई कहिउं अवंतीदेस भणी चालउ । तिहां गर्दभिल्ल राजा छइ तेहनु निग्रह करउ राज्य थकु उच्छेद । पछइ देस वहिचीनई आपणां आपणां राज्य पाल ॥ ३१॥
अभाषि तैः शम्बलमस्ति ‘नो नः, किं कुर्महे कालिकसरिरेवम् ।
ज्ञात्वा च तेभ्यः शुभचूर्णयोगैः, कृत्वेष्टिकाः स्वर्णमयीर्ददौ सः ॥३२॥ तेह छन्, राए कालिकसूरि वीनव्या । अम्हारइ संबल खूटां किसिउं कीजइ । ति वारई कालिकसूरिई इटवाह मोटु बलतु देखीनई माह माहि चूर्णसू किउं । ते चूर्णनइ योगिई सघलीइ ईट सूनानी थई । छनूं रायनई वहिचीनइ आपी॥३२
ढक्कानिनादेन कृतप्रयाणा, नृपाः प्रचेलुगुरुलाटदेशम् ।
तद्देशनाथौ बलमित्र-भानुमित्रौ गृहीत्वाऽगुरवन्तिसीमाम् ॥३३॥ छनूं राय ढक्का इसिइं नामि वाजिवनइ निनादिइं पीयाणां कीधां । श्रीकालिकसूरि लाडदेसमाहि थका बलमित्रभानुमित्र गुरुना भाणेज तेहनई मिली ते साथिई लीघा कटकसहित ते हू कटक अनइ साहिना कटकसहित अवंतीनगरीनी सीमई पुहता ॥ ३३ ॥
श्रुत्वाऽऽगताँस्तानभितः स्वदेशसीमां समागच्छदवन्तिनाथः ।
परस्परं कुन्तधनुर्लताभियुद्धं द्वयोः सैनिकयोर्बभूव ॥३४॥ ते कटक आपणी सीमई आव्यां सांभली गर्दभिल्ल राजा सबल गज तुरंगम रथ पायक सहित साहमु आविउ । परस्परई भाले खांडे तोमर तीर शल्य वेल शस्त्रिका मुद्गरने प्रहारे करी अत्यंत अतिहिं झूझ हवां ॥३४॥
. अभाणि तैः P। ८ नो न किं PM
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