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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिकाचार्यकथा । भो कुणह धम्मसरणं, अहुपा चिय मुच्चए जओ सिग्धं । नो पडिवज्जइ तो सो, निवासिओ तेहि विसयाओ ॥३६॥ --वली आचार्य कहइ; " राजन् ! अजी गउ नथी, ताहरु काइ, जउ द्विविध धर्ममाहे एक धर्मनुं अंगीकार करइ तउ राज्य आपीइ । एह हुंती सीघ्रपणइ मुंकाई । इम कहुं पणि पडिवजइ नहो । तिवारइ ते सगराजाइ गर्दमिलनइ मालवा हुंती निकासउ। दूरि कीघउ ॥३६॥ सूरिहिं ते राजे(रज्जे)सु, ठाविया संजमे तहा भगिणी । बलमित्त-भाणुमित्ता, जामिसुया तत्य संपत्ता ॥३७॥ -स गुरे ते राज्य थाप्या । सविहुंनइ विहची मालवान राज्य आपुं । तथा भगिनी सरस्वती संयमइ थापइ । आपणपइ गच्छमाहे आवी इरियावही पडिकमी मिच्छामि दुक्कड देइ । विहार करता जिहां बलमित्र-भानुमित्र बहिनना बेटा छह तिहां भाव्या ॥३७॥ भरुयच्छदेसपहुणो, पहपवेमुत्स(च्छ)वं च काऊणं । सोऊण निवइप(पु ?)त्तीभानुस(सि)रीनंदणो धम्मं ॥३८॥ -ते भरुअच्छ देसना ठाकुर तेह प्रभु श्रीकालिकाचार्य- प्रवेशोत्सव सविस्तर कराव्या । पछह प्रभुनी देसना सांभली बलमित्र राजानी पुत्री तेहनउ नंदन कुण एक विसेष करइ ॥३८॥ मुहगुरुकहियं गिण्हइ, बलभान(ण)नामओ य पविज(वज) । जिणभत्तं नाउ(ऊ)णं, निव[३]पुरोहा कुणइ वायं ॥३९॥ -राजा श्रीवलमित्र तेहनी पुत्री भानुश्री, तेहनउ नंदन बलभानु नामा कुमार सुहगुरुनुं कथित धर्म सांभली दीक्षा लीधी । इम राजा राजलोक जिनशासन भक्त जाणी राजानउ पुरोधा सुयसा नाम गुरु साथि वाद करइ सभामाहे ॥ ३९॥ सो निजि(ज्जि)ओ गुरूह(हिं), वयणेहिं वंचिऊण निवलोओ(ए ?) । ठाणे ठाणे भत्तं, अणेसणीयं च सो कासी ॥४०॥ -पछइ ते गुरे जीतउ । लोकमाहि पुरोधानी मानम्लानि हुई । तिवार पछद तिणइ ब्राह्मणइ इस्ये वचने कर राजा नगर लोक वंचिउ । सा ते वचन; " अहो राजन् ! एक सोनउ नइ सुरभि । सुहगुरु अनइ सगा। एवडउ काइ करउ । ए सुहगुरुना पायकमल पूजीइ, आराधीइ, तेह भणी ए जिहां बइस्यइ पगलां न्यसइ, ते भूमिका आपणे पगे किम स्पर्शी ! आसातना हुवह । गुरुनइ सरस आहार दीज"। इम मुग्ध लोकनइ कपटवचने विप्र तारी । थानकि थानकि भक्त अनेषणीय करावी गुरु चलाव्या ॥४०॥ ता स गुरू कारणओ, समागए वि य घणे पयठा(इट्ठा)णं । पत्तो पुरप्पस, कुणइ निवो परमभत्तीए ॥४१॥ -तदनंतर गुरु कारण जाणी वर्षाकाले विहार करी पठाणपुरि आव्या । परमभक्तइ तिहां सातवाहन राजाइ नगरप्रवेस कराव्यउ। तिहां सुखद रहइ ॥४१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020798
Book TitleCollection of Kalka Story Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1949
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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