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san Manavi din Aranana Kendre
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SAHNEDENSTANDES
परिस गुणजुचाणं, तायं कझ्यच्चसंठियमणाणं । ण हु मे बीससियव्वं, महिलाणं जीवलोगम्मि ॥ १२७ ।। छाया-दशगुणयुक्ताना, तासां कपिवदस्थितमनसाम् । न हि भवद्भिर्विश्वासितव्यं, महिलाना जीवलोके ॥१२७॥
भामर्थ-ऐसे गुणों वाली स्त्रियाँ होती हैं। उनका मन वानर की तरह चश्चल होता है। इसलिये इस जीवलोक में आप लोगों को त्रियों का विश्वास कदापि नहीं करना चाहिये ॥ १२७ ॥ निएणयं यखलयं, पुप्फेहि विवक्षियं व आरामं । निद्धियं य घेणु, लोएवि अतिल्लियं पिंडं ।। १२८ ।। छाया-निर्धान्यकच खलक, पुष्पैर्विवर्जित चारामम । निदग्धिका च धेनुः, लोकेऽपि अतैलकं पिण्डम् ॥ १२८॥
भावार्थ-जैसे बिना अन्न का स्खल आनी अन्न के शोधन का स्थान एवं बिना पुष्प के बगीचा और बिना दूध की गाय तथा बिना तेल का पिण्ड शोभनीय नहीं होता है, इसी तरह स्त्रियाँ भी सुखहीन होने से अशोभनीय होती है ।। १२८॥
जेणंतरेणं निमिसंति, लोषणा तक्खणं य विगसंति । तेणंतरे वि हियर्य, चित्त सहस्साउलं होई॥ १२६ ॥ छाया-नान्तरेण निमिषन्ति, लोचनानि तत्क्षणच विकसन्ति । तेनान्तरेण हृदयं, पिरासहस्राकुल भवति ॥ १२६ ।।
भावार्थ-जो प्रियतम नियों का स्वार्थ प्राणपण से पूरा करता है ससके बिना उसके प्रफुल्लित नेत्र सङ्कचित होजाते हैं परन्तु जब बह सनका स्वार्थ सम्पादन नहीं करता है तब सस के बिना उसके नेत्र प्रफुल्लित होजाते हैं। जो श्रियाँ कुशीला होती हैं उनका चित्त अपने पति में कभी नहीं रहता है किन्तु हजारों अन्य पुरुषों में घूमता रहता है॥ १२६ ।।
जहाणं पहाणं, निविण्णाणं निविसेसाणं । संसार मूयराणं, कहियपि निरत्थर्य होइ ॥१३॥
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