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________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya.seKailassagarsunGyanmandir SEHEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE! सूचना करती हैं। कोई बाँस पर चढ़ कर नाचती है, कोई पृथ्वी पर नृत्य करती है और इनके द्वारा पुरुषों में पाश्चय उत्पन्न करती हैं। बिगड़ी हुई खियाँ गुप्त रूप से का मियों के साथ दोस्ती करके अपनी कामपिपासा को शान्त करती हैं। अथवा वे अपने केशों को विभूषित करके तथा 0 वनों को पहिन करके काम के गुलाम अधम पुरुषों को वश में करके उनके द्वारा बैल की तरह अपना कार्य कराती हैं तथा बन्दर की तरह कामियों को बचाती है। कोई कोई खियाँ स्वार्थ की पूर्णि न होने पर अपने प्राणों का भी त्याग कर देती है। स्त्रियाँ अपने अङ्ग और अङ्गलियों का स्फोटन तथा स्तनों का पीढ़न एवं नितम्ब का पीड़न, अपने हाथों से अथवा वक्रगति नारा करती और इनके द्वारा कामियों के चित्त को कम्पित करती हैं। कोई अपनी अङ्गलियों को, मस्तक को तथा तृण धादि को चञ्चल करती हुई उनके द्वारा पुरुषों में काम पोड़ा उत्पन्न करती है। कोई वन भूषण आदि के द्वारा उज्वल वेष बना कर तथा भूषणों का शब्द उत्पन्न करके एवं मार्ग में विलास के साथ गमन द्वारा तथा दूसरे भी विविध उपायों द्वारा पुरुषों को आकर्षित कर लेती हैं। इसलिये संयमचारियों को इनका सङ्ग सर्वथा त्याग देना चाहिये। इस संसार में बहुत बिगड़ी हुई स्त्रियाँ है, जो पुरुषों को नागपाश की तरह बन्धन में डालने के लिए प्रवृत्ति करती हैं। वे इस भव में तथा परभव में पुरुषों के बन्धन का कारण बनती हैं। एवं पुरुषों को घोर कीचड में फंसा देती हैं। स्वच्छन्द आचरण करने वाली खियाँ मृत्यु की तरह अपने पति को मार डालने का प्रयत्न करती हैं। वेश्याएं अग्नि की तरह कामियों को जला देती हैं। युवती परिवाजिकाएं भी कई ऐसी होती हैं जो कपट करने में बड़ी निपुण होती और तलवार के समान साधुओं को छिन्न भिन्न करने में प्रवृत्त रहती है। असिमसि सारच्छीयं, कंतारकवाडचारय समाणं । घोर निउर्रवकंदुरचलंत बीमच्छ भावार्थ ॥ १२२ ॥ For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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