SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SA.Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir सलिलमिव निम्नगामिन्या, कैपण योचान हस्ताः, नरक इव अस्त्रासमीयाः, खर इव दुशीला: दुष्टाव इव दुर्दमाः, बाल इव मुहर्गहृदयाः, अन्धकार इव दुष्प्रवेशार, विषयलीच अनाश्रयणीयाः, दुष्टयाहा वापी इव अनवगायाः, स्थानम्रप्ट ईश्वर इव अप्रशंसनीयाः, किंपाकफलमिव मुखमधुराः, रिक्तमुष्टिरिथ बाललोभनीया, मांसपेशीग्रहण मिव सोपद्रवाः, ज्वलितचुटिलीच अमुच्यमान दहनशीलाः, अरिष्टमिव दुर्लचनीयाः, कूटकार्षापण इय कालविसंवादनशीला, चराडशील इव दुःखरक्षिताः, अतिविषादा, जुगुप्सनीयाः, दुरुपचारा, अगम्भीरा, अविश्वसनीयाः, अमवस्थिताः, दुःखरक्षिताः, दुःसपालिताः, भरतिकराः, कर्कशा, दृढवैराः, रूपसौभाग्यमदोन्मताः, भुजगगतिकटिलहदया:, कान्तारगतिस्थागभूताः, कुलस्वजन मित्र भेदनकारिकाः, परदोषप्रकाशिका, तमाः, बलशोधिकाः, एकान्तहरणकोलाः, चम्बला, ज्योतिर्भागदोपराग इव मसरागविरागः, पिचतान्तरजभाशत, अरज्जुका पाशः, दासका अटवी, अनलस्य निलयः, अमीच्या पैतरणी, अनामिको व्याधिः, अवियोगो विषलापः, अरुप उपसर्गः, रतिमान् चिराविभ्रमः, सर्वाङ्गको दाहः, अनप्रका बजाशनिः, असलिलप्रवाहः, समुद्रयः। भावार्थ-अनेक प्रकार के सांसारिक बन्धनों के द्वारा जो बँधे हुए थे तथा कामानुराग से जो अत्यन्त मोहित थे ऐसे हजारों कवियों ने अपने अपमे काव्यों में स्त्रियों का वर्णन विस्तार के साथ किया है परन्तु मनका वर्णन सत्य नहीं है । अतः स्त्रियों का यथार्थ स्वरूप बतलाया जाता है स्त्रियों का हृदय स्वभाव से ही बक (कुटिल) होता है। वे मधुर वचन बोलती हैं परन्तु उनका हृदय मधुर नहीं होता, जैसे वर्षा ऋतु में पहाड़ी नदियाँ बड़ी तेजी के साथ बहती हैं उसी तरह इनमें कपटमय प्रेम का प्रवाह बड़ी तेजी के साथ वहता रहता है। खियाँ शोक की उत्पत्ति भा क्षेत्र है। खियाँ पुरुषों के बल को नाश करने वाली हैं और पुरुषों को वध करने के लिये वध्यशाम के समान हैं। For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy