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________________ SinMahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir भावार्थी-मरने के बाद इस शरीर के नेत्र को निकाल कर पक्षी अपनी चोंच से नोच लेते हैं। बता की तरह भुना प्रथिवी पर पड़ी रहती है। गीवन अँतमी निकाल लेते हैं। खोपड़ी घड़े के समान पड़ी रहती।सस समय यह शरीर बहुत ही भयङ्कर दिखाई देता है। ११३ ॥ भिणिभिणिभणं तसद, विसपियं सुलुसुलित ममोड । मिसिमिसिमिसंतकिमियं, थिविथिविथिवियंतचीमच्छ॥११४॥ छाया--भिणिमिणिभणच्छन्द, विसर्पितं सुलसुलत्मासपुटम् । मिसिमिसिमिसत्कमिक, विविविविधिवदन्त्रबीभत्सम । ११४॥ भावार्थ:-जब यह प्राणी मर जाता है तब इसके मृत कलेवर के ऊपर मक्खियाँ भिन् भिन् करती हैं, और अङ्ग प्रत्या ढीले होकर सूज जाते है। मांस समूह सड़ कर सल सल करता है और उसमें कीड़े उत्पन्न होकर चलते हैं जिससे मिसमिस का शन्न होता है और तड़ी सब कर सलसल करती है। इस कारण वह कलेवर बहुत ही घृणितरूप में दीखता है ।। ११५ ।। पागडियपंसुलीयं, विगराल सुकसंधिसंघायं । पडियं निच्चेयणयं, सरीर मेयारिस जाण ॥ ११५ ॥ छाया-प्रकटित पाशुलिक, विकराल शकसन्धिसक घातम् । पतितं निश्चेतनकं, शरीर मेताहर्श जानीहि ॥ १५ ॥ भावार्थ:-मरण के पश्चात् यह शरीर किसी स्थान में अचेतन होकर पड़ा रहता है, इसकी सारी पसलियाँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। सन्धियाँ सूखी हुई होती है इसलिये यह बहुत ही भयङ्कर दिखाई देता है। हे भाई ! तुम शरीर को इसी तरह का समझो ।। ११५ ॥ बचाउ असुइयरं, नवहिं सोएहिं परिगलंतेहिं । आमगमनगरूवे, निव्वेयं वच्चह सरीरे ॥ ११६ ।। छाया-वर्चस्कादशुचितरं, नवमिः सोतीभिः परिगलभिः । आमक मञ्जकरूपे, निवेदं बजत शरीरे ॥ ११६॥ For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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