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SinMahavir dain AradhanaKendra
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अवस्थाओं को एकत्रित करके निकाल देने पर उस मनुष्य की जितनी आयु शेष बच जाती है उसका मैं वर्णन करूँगा, आप उसे सुनें ।।२।।
जत्तिय मिले दिवसे, जत्तिय राई मुहुत्त मुस्सासे । गभमि वसइ जीवो, आहारविहि य चुच्छामि ॥३॥
छाया-याधन्मात्रान् दिवसान्, यावदात्री मुहर्लोच्छवासान् । गर्भ यसति जीयः, आहार विधिञ्च वक्ष्यामि ॥३॥ भावार्थ-यह जीव जितने दिन, रात, मुहर्त और उच्छवास तक गर्भ में निवास करता है तथा वहाँ बह जो आहार करता है यह सब विषय में बतलाऊँगा ।।३।।
दुरिण अहोरत्त सए संपुगणे, सत्तसत्तरं चेव । गभंमि बसइ जीवो, अद्ध महोरत्त मएणं च ॥४॥
छाया-द्व होरात्रशते सम्पूर्णे, सप्तसप्ततिश्चैव । गर्भे यसति जीवो ऽद्ध महोरात्र मन्यच ॥४॥ भावार्थ-यह जीव २७जा दो सौ साढे सतहत्तर दिन रात तक गर्भ में निवास करता है ॥४।। ए ए उ अहोरत्ता, णियमा जीवस्स गम्भवासंमि । हीणाहिया उ इत्तो उवधायवसेण जायंति ॥५॥
छाया- एते त्वहोरात्राः, नियमतो जीवस्य गर्भवासे । हीनाधिकारिस्थत उपघात यशेन जायन्ते ।।५।। भावार्थ-२७७|| दो सौ साढ़े सतहत्तर दिन रात तो निश्चय ही गर्भचास में लग जाते हैं परन्तु वात पित्तादि दोषों के उत्पन्न होने पर इन से कम या अधिक अहोरात्र भी कभी कभी गर्भवास में गुजर जाते हैं ।।५।।
अट्ठ सहस्सा तिरिण उ,सया मुहुत्ताण पण्णवीसा य । गम्भगो वसइ जीओ, णियमा हीणाहिया इत्तो ॥६॥
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