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________________ SA.Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirtm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir HEATRESHCHERCHOIENCHAHESHETSESEDIESIDESHSEHLESSES दो नालिया मुहूत्तो, सढि पुण नालिया अहोरत्तो। पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, पक्खा दुवे मासो ॥ ६१ ॥ छाया-द्वे नालिके मुहर्राः, षष्टिः पुनर्नालिकाः अहोरात्रः । पञ्च दशाहोरात्राः पक्षः, पक्षौ द्वौ मासः ॥ ६१ ॥ भावार्थः-दो घड़ी का एक मुहूत्त होता है और साठ घड़ी का दिन रात होता है। पन्द्रह दिन रात का एक पक्ष और दो पक्षों का एक मास होता है ।। ६१ ॥ दाडिमपुप्फागारा लोहमई, नालिया उ कारब्वा । तीसे तलम्मि छिदं, छिद्दप्पमाणं पुणो वुच्छं ।। ६२ ।। छाया-दाडिमयुप्पाकारा लोहमयी, नालिका तु कारयितव्या । तस्यास्तले छिद्र, छिद्रप्रमाणं पुनर्वक्ष्ये ॥२॥ भावार्थ:-दाहिम के फूल के समान आकार वाली एक घड़ी बनवानी चाहिये और उसके तल में एक बिद्र बनवाना चाहिये । उस छिद्र का प्रमाण मैं आगे बताऊंगा ।। ६२ ।। छन्नउइ पुच्छवाला, तिवासजायाए गोतिहाणीए । असंवलिया उज्जाय, णायब्बं नालिया छिदं ।। ६३ ।। छाया-पण्ण्यति: पुण्याला, त्रिवर्षजातायाः गोवत्सायाः। असंवलिता: ऋतुकार, ज्ञातव्य नालिकाछिद्रम् ।। ६३ ।। भावार्थ:-तीन वर्ष की बागड़ी के पूछ के ६६ छयानवे बाल, जो सीधे और मुड़े हुए नहीं है उनके समान घड़ी का छिद्र होना चाहिये ॥६३ ॥ महवा उ पुच्छवाला, दुवासजायाए गयकरणए। दो वाला भम्भग्गा, णायचं नालियाच्छिदं ॥ ६ ॥ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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