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San Mahavirin Aradhana Kendre
छाया-तानि च गणितनिर्दिशनि “चत्वारि च कोटिशतानि यष्टिश्च व भवन्ति कोटयः। अशीतिक तन्दुलशत सहस्राणि, भवन्तीत्या त्यातम्" ॥ तदेव मर्धषट्क मुद्गकुम्भान् भुङक्त । अर्धषट् मुद्गकुम्भान् भुजानः चतुर्विशति स्नेहादकशतानि मुक्त। चतुर्विशति स्नेहाटक शतानि भुानः पत्रिंशत् लवणपल सहस्राणि भुङ त । पतिशत लवणपल सहसूाणि भुजाना पटू पट्टक शाटकशतानि परिदधाति । द्विमासिकेन परिवर्तनेन, मासिकेन वा परिवर्तनेन द्वादश पटशाटकशतानि परिदधाति । एष मैच आयुष्मन् ! वर्षशतायुषः सर्व गणितं नलितं मवितं स्नेह लवण भोजनाच्छादनानामपि । एतद्गणितप्रमाणे विविध भणितं महर्षिभिः । यस्यास्ति तस्य गुण्यते यस्थ नास्ति तस्य किं गण्यते ।
भावार्थः-पूर्वपाठ में कहा गया कि-सी वर्ष जीवन धारण करने वाला मनुष्य साहे बाईस वाह तन्दुल का भोजन करता है। अब इस पाठ में यह बताया जाता है कि-एक पाह तन्दुल में कितने तन्दुल के दाने होते है। गणित करने से एक वाह तन्दुलके ४६०६०००००० चार बरपसाठ करोग भीर अस्सी लाख दाने होते हैं। इस प्रकार जो मनुष्य सी वर्ष के जीवन काल में साढे बाईस बाह तन्दुलों का भोजन करता है वह साढे पाँच मग का घडा अर्थात् साढे पाँच घड़ा मग भी खा जाता है तथा चौवीस सौ आठक स्नेह यानी पृत और तेल खा जाता है एवं छत्तीस हजार पल नमक खा जाता है तथा वह सौ वर्ष में ६०० कपडे पहिनता है। यदि वो मास पर नूतन कपड़ा पहिनता है तो सो वर्ष में ६०० कपड़े पहनता है और यदि प्रतिमास नूतन वक्ष धारण करता है तब तो बह सौ वर्ष में १२०० कपड़े पहनता है। हे आयुष्मन सौ वर्ष तक जीवन धारण करने वाले मनुष्यों के उपभोग में आने वाले तन्दुल, वन, नमक तेक्ष और घृत का हिसाब पूर्वक्ति प्रकार से महर्षियों ने बताया है। यह
233ESAUDE BESTE ESSERE CHERCEDESES!
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