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________________ SinMahavir Jain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Sur Kallassagerar Gyanmandir छाया-संश्च श्रमणायुष्मन् ! पूर्व मनुजाना पड़ विधानि संहननानि । तद्यथा वर्षभनाराचं, ऋषभनाराचं, नारा, अर्धनागचं, कीलिका, सेवार्शम् । सम्प्रति खलु आयुष्मन् ! मनुजाना सेवा संहननं वर्तते । श्रासश्च आयुष्मन् । पूर्व मनुजाना पड विधानानि संस्थानानि, तद्यथा-समचतुरस्र', न्यपोधपरिमण्डल, सादि, कुब्ज, वामन, हुण्डम् । सम्प्रति खल्वायुष्मन् ! मनजाना हुण्डं संस्थानं वर्तते ॥१५॥ संहनने संस्थान मुथत्यमायुश्च मनुजानाम् । अनुसमयं परिहीयते, अथसर्पिणीकाल दोषेण ।। ५०॥ कोध मद माया लोभायोत्सर्व वर्धन्ते च मनुजानाम | कूटत्ला फूटमानानि, तेनानुमानेन समिति ।। ५१ ॥ विषमा अध तुला, विषमाणि च जनपदेषु मानानि । विषमाणि राजकुलानि, तेन तु विषमाणि वर्षाणि ।। ५२ ।। विषमेषु च वर्षेषु, भवन्त्यसाराण्यौषधिचलानि । औषधिदुर्बलत्वेग च, श्रायुः परिहीयते नराणाम् ।। ५.३ ॥ एवं परिहीयमाने लोके, चन्द्र इव कृष्ण पक्षे । ये धार्मिकाः मनुष्याः, सुजीवितं जीवितं तेषाम् ।। ५४ ।। हे आयुष्मन् श्रमण ! पूर्व काल में मनुष्यों का संहनन छः प्रकार का होता था। जैसे कि-बऋषभनाराच, ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका और सेवातं । परन्तु हेमायुष्मन् ! आज कल मनुष्यों का सेवात संहनन है। हे आयुष्मन ! पूर्व समय में मनुष्यों का संस्थान छः प्रकार का होता था । जैसे कि-समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि, कुब्ज थामन और हुण्डक । परन्तु भाज कल मनुष्यों का एक मात्र हुण्डक संस्थान होता है। सूत्र १५ ॥ भवसर्पिणी काम के प्रभाव से आज कल प्रति क्षण मनुष्यों का संहनन संस्थान, उच्चता और आयु घटते जा रहे हैं। क्रोध मान माया और लोभ की भविशिष्ट न पृद्धि होती जा रही है । कूट तुला और कूटमान भी बढ़ता जाता है तथा उसी के अनुसार 13SSEEE2E82E38223233EERIUS: 38383816 For Private And Personal Use Only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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