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SinMahavir Jain AradhanaKendra
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कोमल और शुभ लक्षणों को धारण करने वाले छिद्ररहित और जाल के समान तथा सुन्दर होते थे। इनकी अङ्गलियाँ मोटी, वर्तुल, कोमल उत्तम और सुन्दर होती थीं। इनके नख रक्तवर्ण चमकीले समतल निर्मल और सुन्दर होते थे। इनके हाथ में चन्द्रमा के आकार वाली रेखा होती थी। तथा उसमें सूर्य, शंख, स्वस्तिक और चक्र के आकार की रेखा भी होती थी। एवं उसमें चन्द्रमा, सूर्य, शंख स्वस्तिक और चक्र की रेखायें होती थी । इनके हाथ की सभी रेखायें अलग अलग स्पष्ट बनी हुई होती थीं। इनके स्कन्ध, उत्तम मैंसा, सूर, सिंह, व्याघ, सौह, श्रेष हाथी के कन्धे के समान उन्नत और कोमल होते थे । इन के कण्ठ में तीन रेखाएं होती थीं। और वह कण्ठ अपनी अगली के प्रमाण से चार अङ्गल का होता था तथा उत्तम शंख के समान उसकी आकृति होती थी। उनकी मूंछ, न तो बड़ी और न छोटी ही होती थी। किन्तु उचित प्रमाण युक्त सुन्दर और अलग अलग रहने वाले केशों से भरी हुई होती थी। उनकी छुट्टी सिंह की ठुड़ी के समान सुन्दर आकृति वाली और पुष्ट होती थी। उनका अधरोष्ठ साफ किये हुए मूंगे की तरह रक्त होता था। इनके दाँतों की श्रेणी चन्द्रमा के खण्ड की तरह निर्मल एवं मल रहित शंख, गाय के दूध का फेन, कुन्द पुष्प
और कमलिनी के मूल के समान शुक्ल होती थी। इनके दाँत वण्ड रहित और रेखा हीन घन और अरूक्ष तथा सुन्दर होते थे। इनके दाँतों की श्रेणी एक एक दाँतों की होती थी। दांत के पीछे दूसरा वांत नहीं होता था। इनके दांत पूरे बत्तीस होते थे। इनके दांतों की श्रेणी एक आकार की होती थी। और दांतो का सङ्गठन इतना धन होता था कि-जनका परस्पर पार्थक्य लक्षित नहीं होता था । इनकी जीभ और तालु अग्नि में तपाकर निर्मल किये हुए लष्ण सुवर्ण की तरह रक्त वर्ण होते थे। इनके करठ का शब्द सारस पक्षी के शब्द की सरह मधुर और नवीन मेघ के शब्द की तरह गम्भीर एवं कोच पक्षी तथा दुन्दुभि के शब्द की तरह गम्भीर और मधुर होता था। इनकी नासिका गरुड़ की नासिका के समान सीधी और ऊँची होती थी। इनका मुख सूर्य की किरणों
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