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ShaMahavir Jain AradhanaKendra
Acharya Sa Kasagarmur yamandir
SHESHCHRISTERSHRESTSESEGESTERNAGISTRISISE
होती थीं। इनके घुटने समुदगक पक्षी के घुटनों की तरह पुष्ट और अन्दर घुसे हुए होने के कारण लक्षित नहीं होते थे। इनके एक हाथी की सूंड की तरह सन्दर और स्थल होते थे। ये लोग गजगज की तरह पराक्रम के सहित सबिलास गमन करते थे। इनकी शिश्न इन्द्रिय सन्दर घोड़े की इन्द्रिय के समान होती थी। जैसे जातिवान अश्व मन मे उपलिप्त नहीं होता है उसी तरह ये लोग मल के लेप से रहित होते थे। प्रसन्न घोड़ा एवं सिंह की कटि से भी बढ़कर इनकी कटि वर्तुल होती थी। जैसे विकाष्टिका का मध्य भाग तथा मुशल, दर्पण और सोने की बनी हुई तलवार की मुष्ट पतली होती है उसी तरह इनका उदरप्रदेश पतला होता था और उसमें तीन रेखाएँ होती थी। इनकी नाभि गङ्गा केसावर्त की तरह दक्षिणावर्त और तरल की तरह रेखाओं से युक्त एवं सूर्य की किरणों द्वारा तत्काल विकसित कमल की तरह सन्दर और गम्भीर होती थी। इनके शरीर की रोम श्रेणी समान, धन, सुन्दर, सूचम, काली, सुकुमार और मनोहर होती थी। नका जबर महली और पक्षी के उदर की तरह सुन्दर और पुष्ट होता था। इनकी नाभि कमन के समान गहरी होती थी। इनके पार्श्वभाग युक्त, नम्र, सुन्दर, परिमाणयुक्त पुष्ट और आनन्द दायक होते थे। इनका शरीर मांस से पूर्ण होने के कारण पीठ की हड़ी से रहित सा प्रतीत होता था । और सुवर्ण के समान गौर एवं मलरहित तथा रोग आदि के कारण उत्पन्न विकारों से रहित सुन्दर होता था । इनके शरीर में बत्तीस प्रकार के उत्तम लक्षण विद्यमान होते थे। इनकी छाती सोने की शिला के समान प्रशस्त समतल पुष्ट और चौड़ी होती थी तथा उसके ऊपर श्रीवत्स का चिह्न होता था। नगर की अर्गला के समान जम्बी और पतुभ इनकी भुजाएँ होती थी। वह सर्पराज के शरीर की तरह दीर्घ तथा अपने स्थान से निकाल कर रखे हुए परिष दण्ड के समान विशाल और सुन्दर होती थीं। इनके हाथ की कलाई यूप की तरह मोटी, बढ़ी और सुन्दर होती थी। इनकी भुजाओं की सन्धियाँ मनोहर भाकृति वाली स्नायुओं से दृढ बँधी हुई गोल घन और मनोज्ञ होती थी। इनके हाथ के तलते रक्त वर्ण पुष्ट,
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