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________________ SinMahavir dain AradhanaKendra www.kobatirm.org Acharya Su Kasagarmur Gyarmandir स्त्री का रक्त अल्प और पुरुष का वीर्य अधिक होता है तब पुरुष की उत्पत्ति होती है। दुण्हं वि रत्तसुकाणं, तुल्लभाचे नपुंसगो। इत्थिउपसमाओगे, विवं तरथ जायइ ॥२३॥ छाया-द्वयोरपि रक्त शुकयोः, तुल्यभावे नपुसकः । त्योजः समायोगे बिम्ब तत्र जायते । भाथ-जब शुक्र और शोणित दोनों ही बराबर होते हैं तब नपुंसक उत्पन्न होता है तथा जब स्त्री का रक्त वायु के कारण जम जाता है तब विम्ब यानी मां सके पिण्ड की तरह बिम्ब उत्पन्न होता है। अहणं पसवणकाल समयम्मि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छद समागच्छइ तिरियमागच्छह विणिग्याय मावजइ ।।सूत्रं ११॥ काया-अथ प्रसवकालसमये शीर्षण वा पादाभ्यां वा आगच्छति समागच्छति तिर्यगागच्छति पिनिपात मापदयते । भावार्थ-जो जीव प्रसव के समय शिर से या पैरों से निकलता है वह बिना बाधा के निकल जाता है परन्तु जो तिरछा होकर निकलता है वह मर जाता है। कोई पुण पावकारी, चारस संबच्छराई उक्कोस । अच्छइ उ गम्भवासे, असुइप्पभवे असुइयम्मि ॥२४॥ छायाकोऽपि पुनः पापकारी, द्वादशसंवत्सराणि उत्कृष्ट । तिष्ठति तु गर्भवासे, अशपिप्रभवेऽशुपिके ॥२४॥ HE80281672227823878181818222332312233 For Private And Personal use only
SR No.020790
Book TitleTandulvaicharik Prakirnakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherSadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1950
Total Pages103
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_tandulvaicharik
File Size12 MB
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