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सं० १८७० में आपका जयपुर चातुर्मास निश्चित हुआ था । चासटु में आपने अनेक चर्चाएं की, वहां आपके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर कुछ विरोधियों ने द्वेष वश औषधि में विष दिलवा दिया । विष प्रयोग से आपका वहीं पर जेठ सुदि १० स्वर्गवास हो गया ।
शासन के निर्भीक धर्म प्रचारक प्रभावशाली सन्त की पुनीत स्मृतियां आज भी हमें अपने आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर गतिशील बना रही है ।
— पेमराज आछा
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