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जीवन-परिचय
मुनि श्री वेणीराम जी तेरापंथ शासन के इतिहास में मुनि श्री वेणीराम जी का गौरव पूर्ण स्थान है। आपका जन्म बगड़ी में हुआ, और सं० १८४४ पाली में श्री भिक्षु स्वामी के कर कमलों से दीक्षा ग्रहण की। आपने विनयमूर्ति मुनि श्री खेतसी जी के सान्निध्य में विद्यार्जन किया। ___ मुनि श्री वेणीराम जी की प्रवचन कला बड़ी आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक थी। दृष्टांत, हेतु आदि के द्वारा जनता को प्रभावित कर धर्म के अभिमुख कर लेते थे। वे एक निर्भीक धर्म प्रचारक और साहसी संत थे। विरोध से कभी घबराते नहीं थे। धर्म प्रचार करते हुए एक वार रतलाम में आप पधारे, वहाँ पर विरोध के कारण तीन दिन में नौ स्थान बदलने पड़े, फिर भी आप घबराये नहीं, सत्य की आस्था एवं अडिग साहस लिए डटे रहे।
मालवा प्रान्त में आपने अनेक श्रावकों को समझाया, उज्जैन में कई पर्चाएं हुई और अनेक श्रावक बने । आप स्थानकों में भी निःसंकोच चले जाते और चर्चा के लिए सदा प्रस्तुत रहते ।
द्वितीय आचार्य श्री भारमलजी स्वामी आपका बड़ा सन्मान करते थे । एक बार आप माधोपुर पधारे, वहाँ भारमलजी स्वामी विराजे थे। आपका भारी स्वागत के साथ पुर में प्रवेश करवाया गया । भारमलजी स्वामी की आज्ञा से आपने रामजी को दीक्षा दी थी !
आप अच्छे कवि भी थे, स्वामी जी के जीवन पर आपने एक लयु काव्य लिखकर गागर में सागर की उक्ति चरितार्थ की है।
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