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किंचिद् वक्तव्य ।
आ स्वोपज्ञवृत्तिविभूषित 'सूत्रव्याख्यानविधिशतक' नामनो ग्रन्थ जिनागमना अभ्यासी एवा बुधजनोना करकमलमां अर्पण करवामां आवे छे ।
आ ग्रंथना रचयिता बहुश्रुत-महोपाध्याय श्रीमद धर्मसागरगणिवर छ । जो के ग्रन्थकारे आखा ग्रन्थमां क्यांय पोताना नामनो निर्देश कर्यो नथी, परन्तु आ ग्रन्थनी हस्तलिखित पुस्तक उपर 'महोपाध्याय श्रीधर्मसागरगणिवरकृतं' आवो ऊल्लेख छे, ए विगेरे उपरथी आ ग्रन्थना रचयिता पू० उपाध्यायजी संभवित छ । पूज्यश्रीना प्रतिबोधकगुरु जीवनपर्यन्त विगइना त्यागी पंडित शिरोमणी पू० श्री जीवर्षिगणि हता, प्रव्रज्याहेतु गुरु पू० आचार्य श्री आनन्दविमलसूरिजी अने ज्ञानसंपद् गुरु पू० आचार्यश्रीविजयदानसूरिजी हता।
पूज्यश्री विद्याध्ययनमाटे पू० आचार्यश्री विजयहीरसूरिजी साथे देवगिरि पधार्या हता अने न्यायशास्त्रमा निष्णात थया हता। पूज्यश्रीने वि० सं० १६०८ वर्षे पू० आचार्य श्री विजयदानसूरिजीए उपाध्यायपदथी अलंकृत कर्या हता ।
पूज्यश्रीए कल्पकिरणावली-प्रवचनपरीक्षा-तत्त्वतरंगिणीमहावीरजिनस्तुति विगेरे अनेक ग्रन्थोनी रचना करीने जिनशासननी अजोड़ सेवा करी छ ।
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