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भत्तपाणनिरुद्धगं इमं जावज्जीवं वहबंधणं करेह इमं अन्नयरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह ॥ जावि य से अभितरिया परिसा भवइ, तंजहा - माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुताइ वा धूता इ वा सुण्हा इ वा, तेसिंपि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंड णिवत्ते, सीओदगवियडंसि उच्छोलित्ता भवइ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिए परंसि लोगंसि, ते दुक्खंति सोय॑ति जूर॑ति तिप्यंति पिदृंति परितप्पंति ते दुक्खणसोयणजूरणतिप्पणपिट्टणपरित पणवहवंधणपरिकिलेसाओ अपडिविरया भवंति ॥ एवमेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववन्ना जाव वासाई चपंचमाई छद्दसमाई वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं भुंजित्तु भोग भोगाई . पविसुइत्ता वेरायतणाई संचिणित्ता बहूई पावाई कम्माई उस्सन्नाई संभारकडेण कम्मणा से जहाणामए अयगोले इ वा सेलगोले इ वा उद्गंसि पक्खित्ते समाणे उद्गतलमइवइन्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवइ, एवमेव तह पगारे पुरिसजाते वज्जबहुले धूतबहुले पंकबहुले वेरबहुले अप्पत्तियबहुले दंभबहुले णि
बहुले साइबहुले असबहुले उस्सन्नतसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमइवइत्ता अहे रगतलपट्टाणे भवइ ॥ सूत्रं ३५ ॥
अथापरोऽन्यः प्रथमस्य स्थानस्याधर्मपाक्षिकस्य 'विभङ्गो' विभागः स्वरूपं व्याख्यायते - 'इह खलु' इत्यादि, सुगमं यावन्म - |नुष्या एवंस्वभावा भवन्तीति । एते च प्रायो गृहस्था एव भवन्तीत्याह - 'महेच्छा' इत्यादि, महती - राज्यविभवपरिवारादिका
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