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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका द्वि.श्रु. अ. ३ आहारपरिशानिरूपणम् ३६५ टीका-गतपबन्धेनाऽधारुहवनस्पतिकायावच्छिन्ननीयस्वरूपं पदय सम्पति -अध्यारुहयोनि का रुइतनाति शरीरावच्छिन्नेऽपि भवतीति तीर्थ का निर्देश इति दर्शयितुं पर ग्रन्थोऽजताय ते। 'अहावरं' इत्यादि । 'अहावरं' अथाऽपाम् 'पुरक्खायं' पुराऽऽस्तावम, तीर्थकरेणान्योऽपि प्रकारो दशा, 'इइ गइया' इहै काये 'सत्ता' सत्चा:-जीवाः 'अज्झारोहजोणि या अध्यारुहयोनिका!-वृक्षयोनिकाऽध्यारुहवनस्पतिविशेषा एव योनिः-उत्पत्तिस्थान येषां तेऽध्यारुहयोनिका वनस्पतिविशेषाव च्छिन्ननीवाः अध्यारहवनस्पतिमाता इत्यर्थः, 'अझारोहसमा अध्यारुहसंभवा:तस्थितिका इत्ययः अध्यारहाणां वृद्धथा बढुंगनाः, 'जाव कम्मनियाणेणे' यावत्कर्मनिदानेन-कर्मनिमित्त मामाघ 'तत्थ वुकमा तत्रोपक्रमाः तत्र-अध्या. 'अहावरं पुरक्खाय' इत्यादि। टोकार्थ--पिछले सूत्र में अध्यारुह (वृक्षों के ऊपर बढने वाली) बल्ली लता वनस्पतिकाय के जीवों का स्वरूप कहा गया। अब अध्यारुह योनिक अध्यासह वनस्पतिकाय भी होते हैं, ऐसे तीर्थ कर के कथन को दिखलाने के लिए सूत्र कहा जाता है। तीर्थकर भगवान ने वनस्पतिजीवों का अन्य प्रकार भी कहा है। वह इस प्रकार है-अध्यारुह योनिक अर्थात् वृक्षयोनिक अध्यारह नामक वनराति ही जिनकी योनि है, ऐसे जीव, अर्थात् वे जीव जो अध्यारह वनस्पति से उत्पन्न होते हैं और अध्यारुह वनस्पति की वृद्धि होने पर बढ़ते हैं। वे कर्म के निमित्त से अध्यारह वनस्पति में 'अहावर पुरक्खाय' या ટીકાર્થ–પાછલા સૂત્રમાં અધ્યારૂહ (વૃક્ષના ઉપર વધાવાવાળી વેલ) વનસ્પતિકાયના જીનું સ્વરૂપ પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે. હવે અધ્યારૂહ નિવાળા, અધ્યારૂ વનસ્પતિકાય પણ હોય છે, એ પ્રમાણેના તીર્થંકર ભગવાનના કથનને બતાવવા માટે આ સૂત્ર કહેવામાં આવે છે. તીર્થકર ભગવાને વનસ્પતિ અને અન્ય પ્રકાર પણ બતાવેલ છે. તે પ્રકાર આ પ્રમાણે છે. –અધ્યારૂહ નિવાળા અથત વૃક્ષનિક અધ્યારુ નામની વનસ્પતિ જ જેમની નિ અર્થાત્ ઉત્પત્તિ સ્થાન હોય છે, એવા છે અર્થાત તે છે કે જેઓ અધ્યારૂહ વનસ્પતિમાંથી ઉત્પન્ન થાય છે. અને અધ્યારૂહ વનસ્પતિ વધવાથી વધે છે. તેઓ કર્મના નિમિત્તે અધ્યારૂહ For Private And Personal Use Only
SR No.020781
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages797
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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