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सूत्रकृतामसूत्रे पथाऽतिभयानकमपि समुद्रं संतरन्ति, तथाऽने के महान्तो यं मार्ग सम्यग्ज्ञानादिकमवलम्ब्य संसारसागरं तीर्णाः तादृशं मार्गमहं ते कथयिष्यामि ॥५॥ मूलम्-अत्तरिंसु तरंगे, तरिस्संति अणागया।
तं सोचाँ पडिक्खामि, जंतवो ते सुंणेह मे ॥६॥ छाया--अतारिषुस्तरन्त्ये के, बरिष्यन्ति अनागताः ।
___ तं श्रुत्वा मविवामि, जन्तवस्तं शृणुत मे ॥६॥ को ग्रहण करके अत्यन्त भयानक समुद्रको भी पार कर लेते हैं। उसी मकार अनेक महापुरुष जिस मार्ग को सम्यग्दर्शन, आदि को अवलम्पन करके संसारसागर से तिर चुके हैं। इस प्रकार का मार्ग में तुम्हें कहता हूं ॥५॥ 'अत्तरिसु' इत्यादि।
शब्दार्थ--'जन्तयो-जन्तवः' बहुतसे प्राणी 'अत्तरिसु-अताए ।' इस मार्ग का आश्रय लेकर भूत काल में अनेक लोगोंने इस संसार सागर को पार किया है 'तर तेगे-तरत्येके' तथा कोई भव्य जीव वर्तमान काल में भी पार करते हैं 'अणागया तरिस्संति-अनागताः तरि. ध्यन्ति' एवं भविष्य कालमें भी बहुतसे संसार को पार करेंगे 'तं सोच्चा पडिवक्खामि-तं श्रुत्वा प्रतिवक्ष्यामि' उस मार्ग को मैं भगवान महावीर स्वामी के मुखसे सुनकर आपको कहूँगा 'तं सुणेह मे-तं मे श्रृणुत' उस कथन को मेरेसे आप लोग सुनो. ॥६॥ વેપારી નૌકા-વહાણને લઈને અત્યંત ભયંકર એવા સમુદ્રને પાર કરી જાય છે, એજ પ્રમાણે અનેક મહાપુ જે માર્ગ એટલે કે–સમ્યક્ દર્શન, જ્ઞાન, વિગેરેનું અવલમ્બન કરીને સંસાર સાગરથી તરી ચૂકયા છે. આવા પ્રકા રને માર્ગ હું તમને કહું છું. ૫
'अत्तरिसु' त्यादि
शम्दाय - 'जतवो-जन्तवः' । १२॥ प्राणियो 'अत्तरि सु-अता:' માગને આશ્રય લઈને ભૂતકાળમાં અનેક લોકોએ આ સંસાર સાગરને પાર
छ, सरतेगे-तरन्त्येके' तथा १०५ ०१ तभानमा ५५ पा२ ४रे 2. 'अणागया तरिस्संति-अनागताः तरिष्यन्ति' तम विध्य मा ५ घ
। ससारने पा२ ४२२. 'तं सोच्चा पडिवखामि-तं श्रुत्वा प्रतिवक्ष्यामि' એ માર્ગનું કથન ભગવાન મહાવીર સ્વામીના મુખથી સાંભળીને આપને કહીશ 'तं सुणेह मे-तं मे श्रुणुत' थेइथनने भारी पांथा तभी सindi ku
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