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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ.१ नारकीयवेदनानिरूपणम् .. ३८५ मूलम्--अप्पेण अप्पं इह वचइत्ता भवाहमे पुध्वसते सहस्से ।। चिट्ठति तत्था बहुकूरकम्मा, जहा कडं कम्म तेहासिभा।२६। छाया--आत्मनात्मानमिह वंचयित्वा भवाधमान् पूर्वशतसहस्रशः । __ तिष्ठन्ति तत्र बहुक्रूरकर्माणो यथाकृतं कर्म तथाऽस्य भारः ॥२६॥ अन्वयार्थः--(इह) इहलोके (अप्पेण) आत्मना स्वेनैव (अप्प) आत्मानं स्वं (पंचात्ता) चयित्वा (पुवसते सहस्से) पूर्व शतसहस्रशः (भवाहमे) भवाधमात् मस्स्यबन्धलुब्धकभवान् प्राप्य । (बहुकूरकम्मा) बहुक्रूरकर्माणः (तस्य) तत्र नरके 'अप्पेण' इत्यादि। शब्दार्थ-'इह-दह' इस मनुष्य भव में 'अप्पेण-आत्मना' अपने आप ही 'अप्पं-आत्मानम्' अपने को 'वंचहत्ता-पंचयित्वा' वंचित करके 'पुनसते सहस्से-पूर्व शतसहस्रशः' पूर्वजन्म में सैकडो और हजारों बार 'भवाहमे-भवाधमान' लुब्धक आदि अधम भवों को प्राप्त करके 'बहुकूरकम्मा-बहुकरकर्माणः' बहुरकर्मी जीव 'तत्थ-तन्त्र' उस नरक में 'चिटुंति-तिष्ठन्ति' रहते हैं 'जहाकडं कम्म-यथाकृतं कर्म पूर्व जन्म में जैसा कर्म जिसने किया है 'तहासि भारे-तथाऽस्य भारः' उसके अनुसार ही उसे दुःख प्राप्त होता है ।२६॥ ___ अन्नया-- इस मनुष्यभव में अथवा मनुष्य लोक में जो अपने आप की वंचना (ठगना) करते हैं, वे पहले सैकड़ों और हजारों पार लुब्धक (शिकारी) आदि के अधम भवों को प्राप्त करते हैं, फिर वे 'अप्पेणं' त्याह शार्थ:--'इह-इह' 0 मनुष्यसभा 'अप्पेण-आत्मना' पाते 'अप्पं-- आत्मानम्' पाताने 'वचइत्ता--वयित्वा' इतरीन 'पुव्वसते सहस्से-पूर्व शतमहस्रशः' पूनममा से13. अने गरे। १.२ 'भवाहमे-भवाधमात्' दुध वगेरे ममलने प्राप्त शर बहुकूरकम्मा-बहुक्रूरकर्माणः' पहु४२ भी. ७१ 'तत्थ-तत्र' मे न२४मा 'चिटुंति-तिष्ठति' २९ . 'जहा कडं काम• यथाकृतं कर्म' पूर्वममा भने या छ. 'तहासि भारे-तथाऽस्य भार' । अनुसार तेन प्राप्त थाय छे. ॥२६॥ સૂત્રાર્થ–આ મનુષ્યભવમાં અથવા આ લેકમાં જેઓ આત્મવંચના (પોતાના આત્માને છેતરવાની પ્રવૃત્તિ) કરે છે તેઓ પહેલાં તે કહે અથવા હજારો વાર શિકારી આદિ અધમ છ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. ત્યાર सू० ४९ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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