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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे मलम्-जइ ते सुया वेयरणीभिदुग्गा, णिसिओ जहा खुर इव तिक्खसोया। तरांति ते वेयरणिभिदुग्गां उसुचौइया सत्तिसुहंम्ममाणा८| छाया--यदि त्वया श्रुता वैतरण्यभिदुर्गा निशितो यथा क्षुए इव तीक्ष्णस्रोताः। तरन्ति ते वैतरणीमभिदुर्गामिपुनोदिताः शत्तिगु हन्यमानाः ॥८॥ अन्वयार्थः--(पिसिओ खुर इव तिवखसोया) निशितः क्षुर इव तीक्ष्णप्रीताः (जइ ते) यदि ते (अभिदुग्गा) अभिदुर्गा- दुःखोत्पादिका (वेयरणी) कथन में सूर्य को वाण की उपमादी गई हैं तथापि दोनों में महान अन्तर है, उसी प्रकार यहां के ताप और नरक के ताप में भी भारी अन्तर है॥७॥ — शब्दार्थ-णिसिओ खुर इव तिक्खसोया-निशितः क्षुर इव तीक्ष्ण स्रोताः' तीक्ष्ण उस्तरे की धार के समान तेज धार वाली 'जह ते'-यदि स्वया' जो तुमने 'अभिदुग्गा-अभिदुर्गा' अति दुर्गम वेधरणी-वैतरणी' वैतरणी नदी को 'सुया-श्रुता' सुना होगा 'ते-ते' वे नारक जीव 'अभिदुग्गां वेयरणि-अभिदुर्गा वैतरणीम्' अतिदुर्गमवैतरणी की 'उसुचोइया-इषुनोदिताः' बाण से प्रेरित किये हुए 'सत्तिसु हम्ममाणा-शक्तिसु हन्यमानाः' तथा भाला से भेदकर चलाये हुए 'तरंतितरन्ति ' तैरते हैं ॥८॥ . अन्वयार्थ-छुरा के समान तीक्ष्ण धार वाली वैतरणी नदी तुमने सुनी होगी। वह अत्यन्त दुर्गम है और क्षार, उष्ण एवं रुधिर जैसे માટે તફાવત છે, એ જ પ્રમાણે આ પૃથ્વી પરના તાપ (ગરમી) અને નરકના તાપ વચ્ચે ઘણો જ મેટે તફાવત છે. પણ Awar- 'णिसिओ खुर इव निक्खसोया-निशितः क्षुर इव तीक्ष्णस्रोताः' त'६५ मत पा२ स२५ ते पारवाणी 'जइ ते-यदि त्वया ने तमे 'अभिदुग्गा-अभिदुर्गा' मयत हुभ वेयरणी-वैतरणी' वैत नमना नहीन 'सुया-श्रुता' समजी री 'ते-ते' ते ना२६ । 'अभिदुगाां वेयरणिअभिदुर्गा' वैतरणीम्' सत्यात दुभ वैतरण नहीने 'सुचाइया-इषु नोदिता.' माथी प्रे२९ ४रेस 'सत्तिमु हम्ममाणा-शक्तिसु हन्यमानाः' माताथी नहीने यावामा भावना ना२३ छ। 'तरंति-तरन्ति' तरे छ. ॥८॥ સૂત્રાર્થ—અસ્ત્રાના જેવી તીણ ધારવાળી વૈતરણી નદીનું નામ તે તમે સાંભળ્યું હશે, તે નદી ઘણી જ દુર્ગમ છે. તે ક્ષાર, દૃષ્ણ અને રુધિર For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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