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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थः--(अप्पेगे) अप्येके केचन पुरुषाः (व:जुनइ) वचो युजति वाचं भाषन्ते तद्यथा (नगिणा) नग्ना एते जिनकरियकादयः तथा (पिंडोलगा) पिण्डोलकाः परपिण्डपार्थकाः (अहमा) अधमा मलमलिनदेहाः (मुंडा) मुण्डाः लुंचित शिरसः (कंडविणलंगा) कंडुविनष्टांगा: कण्डूकृतक्षतैः विकृतशरीराः (उजल्ला) उज्जल्लाः उद्गतः जल्लः मलं शुष्कास्वेदो वा येषां से उज्जलाः कठिनमलयुक्तशरीरका यथा तथा (असमाहिया) असमाहिताः अशोभना वीभत्सा वा इत्थं कथयन्तीति ॥१०॥ ___टीका-'अप्पेगे' अप्येके एके अनार्यतुल्याः पुरुषाः साधूनधिकृत्य 'वइझुंजई' वचो युञ्जन्ति वाचमुदीरयन्ति, कीदृशीं वाचमुदीरयन्ति, तत्राह-'नगिणा' पिण्डोलगाः' पर पिंडके इच्छुक हैं 'अहमा-अधमाः' अधम हैं 'मुंडामुण्डाः' मुण्डित हैं 'कंदविणटुंगा-कंदविनष्टांगाः' कंदरोगसे इनके अङ्ग नष्ट होगये हैं 'उज्जल्ला-उजल्लाः' ये शुष्क पसीने युक्त और 'असमाहिया-असमाहिता: अशोभन अर्थात् बीभत्स हैं ऐसा कहते हैं ॥१०॥ ____ अन्वयार्थ-साधु को देखकर कोई कोई कहते हैं, ये नग्न हैं (जिनका ल्पिक आदि) पराये पिण्ड की प्रार्थना करने वाले हैं, अधम हैं मलीन शरीरवाले हैं, मुडित हैं, खुजली के कारण इनका शरीर क्षत विक्षत हो रहो है, मैल जमा हुआ है, ये पसीने से तर हो रहे हैं या इनका शरीर कठिन मल से युक्त है, ये केसे अशोभन या बीभत्स दिखाई देते हैं ? ॥१०॥ टीकार्थ-अनार्यों के सदृश कोई कोई पुरुष साधुओं के सम्बन्ध में इस पिंड २ छ. 'अहमा-अधमाः' मधम छे, मुंडा- मुण्डाः' ते मु९ित, 'कंडूविणटुंगा-कंडूविनष्टांगाः' ४ थी तमना नष्ट गया छ. 'उज्जल्ला-उउजल्लाः' माशु ५२से पाथी युक्त अन 'असमाहिया-असमा. हिताः' अशोमन अर्थात् मानस छे भाई ४ छे. ॥१०॥ સૂવાર્થ-જિનકલ્પિક આદિ સાધુઓને જોઈને કઈ કઈ માણસે એવું કહે છે કે-“આ લેકે નગ્ન છે, પરાયા પિંડને (આહારને) માટે પ્રાર્થના કરનારા છે, અધમ છે, મલીન શરીરવાળા મુંડિત છે, ખુજલીને કારણે તેમનું શરીર ક્ષત વિક્ષત થઈ ગયું છે, તેમના શરીર પર મેલને થર જામી ગયે છે, તેમનું શરીર પરસેવાથી તરબળ છે, અથવા તેમનું શરીર કઠણું મેલથી યુક્ત છે. તેઓ કેવાં કેળ અને બીભત્સ દેખાય છે!” ૧૧ ટીકાઈ– અનાર્યોના જેવા સ્વભાવવાળા લેકે સાધુએ ને અનુલક્ષીને આ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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