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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. म. ४ उ.१ स्त्रीपरीषहनिरूपणम् अन्वयार्थ:--(जे) यः (मायरं पियरं च) मातरं पितरं च (पुवसंजोगं) पूर्वसंयोगम् तथा श्वशुरादिकं परसंयोगम् (विप्पजहाय) विपहाय-त्यकुत्वा (भारतमेहुणो) आरतमैथुनः परित्यक्तमैथुनः (एगे सहिए) एकः सहितः एको ज्ञानदर्भग चारित्रयुक्तः (विवित्तेमु) विविक्तेषु त्रीपशुपण्डकवतिस्थानेषु (चरिस्साथि) चरिष्यामि-संयममार्गे विचरिष्यामि ॥१॥ टीका--'जे' यः कश्चित्पुरुषः 'मायरं' मातरम् 'पियर' पितरम् , जननीजनकं च 'पुनसंजोगं' पूर्वसंयोग-मातृप्रभृतिम् , तथा अपरसंयोग श्वशुरादि___ शब्दार्थ--'जे ये' जो पुरुष 'मायरं पियरं च-मातरं पितरं च' माता पिता का 'पुटवसंजोगं-पूर्वसंयोगम्' पूर्वसंयोग को और श्वसुरादिके पर संयोगको 'विप्पजहाय-विमहाय' छोडकर और 'आरतमेहुणो-भारतमैथुन" मैथुन से रहित होकर 'एगेसहिए-एक सहितः' अकेला ज्ञान, दर्शन, और चारित्र से युक्त रहता हुआ 'विवित्तेसु-विविक्तेषु' स्त्री पशु भौर नपुंसक वर्जित स्थानों में 'चरिस्सामि-चरिष्यामि'विचरूंगा ॥१॥ ___ अन्वयार्थ--जो पुरुष ऐसा संकल्प करता है कि मैं माता, पिता और सम्पूर्ण पूर्व संयोग को त्याग कर तथा मैथुन से विरत होकर, एकाकी ज्ञान दर्शन और चारित्र से युक्त होकर, स्त्रीपशु और पण्डक से वर्जित स्थान में रहकर संयम का पालन करूंगा ॥१॥ टीकार्थ-जो कोई पुरुष ऐसी प्रतिज्ञा करता है कि माता, पिता, का पूर्वसंयोग (माता आदि का) तथा अपरसंयोग (श्वशुर आदि का) त्याग शहाय-'जे-ये २ १३५ 'मायरं पियरं च-मातरं पितरं च मातापिताना 'पुव्वसंजोग-पूर्वसंयोगम्' पूस याने तथा सास। विरेना ५२ सयशन 'विप्पजहाय-विग्रहाय' छ।डीने 'आरतमेहुणो-आरतमैथुनः' तथा मथुन ना त्या ४शने 'एगे सहिए-एकः सहितः' मे र सानाशन भने यात्रि थी युत २हीने 'विवित्तेसु-विविक्तेषु' स्त्री पशु भने नपुस २क्षित स्थानमा 'चरिस्सामि-चरिष्यामि' वियरीश. ॥१॥ સૂત્રાર્થ–જે પુરુષ એ સંકલપ કરે છે કે હું માતા-પિતા વિગેરેના સંપૂર્ણ પૂર્વસંગેને ત્યાગ કરીને, મૈથુનસેવનમાંથી નિવૃત્ત થઈને, જ્ઞાનદર્શન અને ચારિત્રથી યુક્ત થઈને, સ્ત્રી, પશુ અને પંડક (નપુંસક)થી ૨હિત સ્થાનમાં એક રહીને સંયમનું પાલન કરીશ, તે પુરુષ જ સંયમની આરાધના કરી શકે છે. ૧ ટીકાર્થ-જે કઈ પુરુષ એવી પ્રતિજ્ઞા કરે છે કે હું માતા-પિતા આદિના સંગરૂપ પૂર્વસંગને તથા પત્ની, સાસુ, સસરાના સંગરૂપ અપરસંગને स. २६ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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