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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम्-एए पुवं महापुरिसा आहिता इहे संमता । भोच्चा बीओद्गं सिद्धा इंइ मेयमर्गुस्सुयं ॥४॥ छाया--एते पूर्व महापुरुषा आख्याता इह समताः । भुक्त्या बीजोदकं सिद्धा इति एतत् अनुश्रुतम् ॥४॥ अन्वयार्थ:--(पुर्व) पूर्व =पूर्वकाले (एए महापुरिसा) एते महापुरुषा: (आहिया) आर पाता:-जगत्मसिद्धाः, तथा (इह) इहास्मिन जैनागमेपि (संपता) सम्मताः मान्याः, (बीभोदगं) बीजोदकं (भोच्चा) भुक्त्वा (सिद्धा) सिद्धा-मोक्षं माता: (इइमेयं) इत्येतत् (अणुस्सुयं) मयाऽनुश्रुनं महाभारतादि ग्रन्थत इति ॥४॥ जिस मार्ग से मोक्ष प्राप्त किया, हमें भी वैसा ही करना चाहिये। उनसे विपरीत मार्ग का आश्रय नहीं लेना चाहिए ॥ ३ ॥ ... . शब्दार्थ-'पुव्वं-पूर्व' पूर्व काल में 'एए महापुरिसा-एते महापुरुषा' ये महापुरुष 'आहिया-आख्याता:' जगत्प्रसिद्ध थे, तथा 'इह-इह' इस जैन आगम में भी 'संपता-सम्नताः' मान्यपुरुष थे 'बीमोदगधीजोदकम्' इन महापुरुषोंने बीज-कन्दमूलादिक और उदक-शीतल जल्ल का 'भोच्चा-भुक्त्वा' उपभोग करके सिद्धा सिद्धा' मोक्ष प्राप्त किया था 'इइमेयं-इत्येतत्' यह 'अणुस्सुयं मया अनुश्रुतम् ' मैंने (महाभारत आदिमें सुना है ।। ४ ।। ___ अन्वयार्थ--प्राचीन काल में यह महापुरुष जगत्प्रसिद्ध थे और जैनागममें भी ये मान्य हैं। ये बीज और सचिस जलको उपभोग करके सिद्ध हुए हैं, ऐसा मैने महाभारत आदि ग्रन्थों से सुना है ॥ ४ ॥ લે જોઈએ તેમના તે માર્ગને અનુસરવાથી જ મોક્ષ પ્રાપ્ત થશે-વિપરીત માર્ગે ચાલવાથી આત્મકલ્યાણ સાધી શકીએ નહીં. આ પ્રકારનું તેઓ પ્રતિપાદન કરે છે. ૩ शा---'पुव्वं-पूर्व' नुन समयमा n 'एए महापुरिसा-एते महापुरुषाः' या महापु३५ 'आहिया-आख्याताः' गत् प्रसिद्ध तर, तथा "इह-इह' 241 जैन आगममा ५५ 'समता-सम्मताः' मान्य ५३१ ता 'बीओदगं-बीजोदकम्' આ મહાપુરૂએ બીજ-કન્દ, મૂલ વગેરે અને ઉદક-શીતળ પાણીને “મોઝાभक्त्वा प रीने 'सिद्धा-सिद्धाः' भाक्ष प्रा डा. इइमेयं-इत्येतत्' मा प्रभार 'अणुस्सुयं-मयाअनुश्रुतम्' में (महाभारत विरेभा) सामन्यु छ. १४॥ સૂત્રાર્થ–-પ્રાચીત કાળમાં આ પુરૂષે જગવિખ્યાત હતા. જૈન આગમામાં પણ આ પુરૂષને માન્ય ગણવામાં આવેલ છે. તેમણે બીજ અને For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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