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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.३ उ.४ मार्गस्खलित साधुमुद्दिश्योपदेशः १४३ ___ अन्वयार्थः-(आसिले) असिलो ऋषिः (देविले चेव) देवलश्च ऋषिः (दीवायणमहारिसी) द्वैपायनो महाऋषिः (पारासरे) पराशरः (दगं) उदकं शीतजलं पीत्वा (य) च (हरियाणि बीयाणि) हरितानि बीजानि (भोच्चा) भुक्त्वा मोक्षं प्राप्तवानिति कथयन्तीति ॥३॥ टीका--'आसिछे' असिलः असिलो नाम ऋषिः 'चेव' अपि च 'देविले" देवल नामा ऋषिः दीवायण महारिसी' द्वैपायनो महर्षिः, अथ च 'पारासरे' पराशरः पाराशरश्च, इत्येते ऋषयः 'दगं' उदकं 'य' च 'हरियाणि बीयाणि' हरितानि बीजानि-शीतोदकवीनहरितादिकं 'भेचाः' भुक्त्वा सिद्धि प्राप्ताः। एतेहि महाऋषय आसन् एभिर्यत् कृतम् येन च पथा मोक्षं लब्धवन्तः इमे, माद्द. शैरपि तथैव कर्त्तव्यम् , न तु तद्विपरीतमार्गे ॥३॥ महर्षि द्वैपायन 'पारासरे-पराशरः' एवं पराशर ऋषि इन लोगोंने 'उदगं-उदकम् ' शीतल जलका पान करके 'य-च' और 'हरियाणि षीयाणि-हरितानि बीजानि' हरित वनस्पतियों को 'भोच्चा-भुक्त्वा' आहार करके मोक्ष प्राप्त किया था ऐसा कहते हैं ॥ ३॥ ___अन्वयार्थ--असिल, देवल, द्वैपायन और पराशर नामक ऋषियों ने शीत जल पीकर और हरित तथा बीजों का भोजन करके मोक्ष प्राप्त किया है । ऐसा वे कहते हैं ॥ ३॥ .. टीकार्य--असिल नामक ऋषि, देविलनामक ऋषि द्वैपायन महर्षि, और पराशर ऋषिने शीतल जल, हरितकाय और बीजों का उपभोग करके सिद्धि प्राप्त की। ये सब महान् ऋषि थे । इन्होंने जो किया और पारासरे-पाराशरः' १५ ५२२२२ ऋषि मा सामे 'उदगं-उदकम्' शीतल पाहानु सेवन ४शन 'य-च' मने 'हरियाणि बीयाणि-हरितानि बीजानि' हरित वनस्पतिमान 'भोच्चा-मुक्त्वा'माहा२ अरीन भाक्ष प्रा यों . मे ४ छे. ॥3॥ सूत्राथ:--मासिस, देवर, द्वैपायन, म पाराश२ नामना बियाणे શીતળ જળનું પાન કરીને તથા હરિત (લીલોતરી) તથા બીજેનું ભોજન કરીને મોક્ષ પ્રાપ્ત કરેલ છે, એવું તેઓ કહે છે, આવા ટીકાર્થ––અસિલ નામના ઋષિ, દેવિલ નામના અષિ વૈપાયન મહર્ષિ અને પારાશર ઋષિએ સૂચિત્ત જલ, હરિતકાય (લીલેરી) અને બીજાને ઉપભોગ કરીને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી છે. તેઓ મહાન ઋષિઓ હતા. તેમણે જે કર્યું, અને જે માગે મેક્ષ પ્રાપ્ત કર્યો તે માગને આપણે પણ આશય For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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