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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे ६७९ . अन्वयार्थ (इणमेव) इममेव इमं द्रव्यक्षेत्रकालभावलक्षणं (खणं) क्षणम् अवसरं, तथा (बोहिं) बोधि सम्यक्त्वं च (णो सुलभ) नो मुलभाम् (आहिय) आख्याताम् सर्वज्ञैः, कथिताम् (विजाणिया) विज्ञाय(सहिए)सहितः हितेन ज्ञानदर्शनचारित्रेण युक्तः सन् (एवं) एवमनेन प्रकारेण (अहिपासए) अधिपश्येत्-विचारयेदित्यर्थः (जिणे) जिनः ऋषभदेवः (आह) कथितवान् (सेसगा) शेषकाः-अन्येपि (इणमेव) इदमेव आहुरिति ॥१९॥ . टीका'इणमेव, इममेव 'खणं' क्षणम् अवसरम् द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव स्वरूपमनुकूलं कर्मनिर्जराकारकमवसरं विज्ञाय अवसरोचितं कर्त्तव्यम्, तथाहि-द्रव्य शब्दार्थ-'इणमेव-इममेव' यही 'खणं-क्षणम्' अवसर है ऐसा तथा 'बोहिबोधिम्' सम्यक्त्व भी ‘णो मुलहं-नो सुलभाम्' मुलभ नहीं है, ऐसा 'आहियंआख्याताम्' सर्वज्ञों ने कहा है ऐसा 'विजाणिया-विज्ञाय' जानकर 'सहिए-- सहितः' ज्ञान दर्शन और चारित्र से युक्त होकर ‘एवं-एवम्' इस प्रकार 'अहिपासए-अधिपश्येत्' विचार करे, 'जिणे--जिन' श्री ऋषभ जिनेश्वरने 'आह-आह' कहा है 'सेसगा-शेषकाः' और शेष तीर्थकरों ने भी 'इणमेव-इदमेव' यही कथन किया है ॥१९॥ अन्वयार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप ग्रह अवसर, तथा सर्वज्ञों द्वारा सम्यक्त्व मुलभ नहीं है इसे जानकर ज्ञानदर्शन और चारित्र तप से सम्पन्न होकर इस प्रकार विचार करे । यह ऋषम देव ने कहा है और अन्य तीर्थकरों ने भी कहा है ।।१९॥ शहाथ-इणमेव-इममेव' मा 'खण-क्षणम्' अवसर छे तथा 'बोहि-बोधिम्' सभ्य५ ५ णो सुलह-नो सुलभाम् सुतम नथी, से 'अहिय-आख्याताम्' सर्व शाम्मे सछे से विजाणिया-विज्ञाय नीने 'सहिए-सहितः' ज्ञान शान भने यास्थिी युक्त ने 'एक-एवम्' २प्रारं 'अहिपासए-अधिपश्येत्' (क्या२ ४२ 'जिणे-जिनः' श्री ऋषम गिनेश्वरे 'आह-आह छ 'सेलगा-शेषकाः' भने शेष तीर्थ शो ५५ 'इणमेव-इदमेव' २00 ४थन थुछ. ॥ १८ ॥ દ્રવ્ય ક્ષેત્ર, કાળ અને ભાવ રૂપ આ અવસર તથા સર્વ દ્વારા કથિત સમ્યકત્વ સુલભ નથી, એવું જાણીને જ્ઞાનદર્શન અને ચારિત્રથી સંપન્ન બને, ભગવાન રાષભદેવે પણ આ પ્રમાણે કહ્યું છે અને અન્ય તીર્થકરેએ પણ આ પ્રમાણે ફરમાવ્યું છે. -सूत्राथ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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