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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ बोधिनी टोका प्र. श्रु अ. २. उ. २ स्वपुत्रभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ६१५ मूलम् अणिहे सहिए सुसंवुडे धम्मट्ठी उवहाणवीरिए । विहरेज्ज समाहिहंदीए अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ ३० अनिहः सहितः मुसंवृतः धर्मार्थी उपधानवीयः । विहरेत्समाहितेन्द्रियः आत्महितं दुःखेन लभ्यते ॥३०॥ अन्वयार्थ:(अणिहे) अनीहः कस्मिन्नपि वस्तुनि स्नेहरहितः (सहिए) सहितः= हितेन ज्ञानचारित्रादिना युक्तः(संवुडे) संवृतः इन्द्रियमनोभ्याम् (धम्मट्टी) धर्मार्थी -धर्मप्रयोजनवान् भवेत् तथा (उवहाणवीरिए) उपधानवीय-उपधाने उग्रतपसि शब्दार्थ-'अणिहे-अनीहः' साधु पुरुप किसी भी वस्तु में स्नेह न करे ज्ञान चरित्र वाले हितावह काम करे 'संवुडे-संवृतः' इन्द्रिय एवं मनसे गुप्त रहे 'धम्मट्टी-धर्मार्थी धर्म प्रयोजन वाले बने तथा 'उबहाणवीरिएउपधानवीर्यः' तप में पराक्रम करे 'समाहिइंदिए-समाहितेन्द्रियः' इन्द्रियों को नियमन में रखे 'विहरेज-विहरेत्' इस प्रकार से साधु संयम का अनुष्ठान करे क्यों की-'अत्तहिय-आत्महितम्' अपना कल्याण 'दुहेण-- दुःखेन' दुःख से 'लब्भइ--लभ्यते' प्राप्त होता है ॥३०॥ -अन्वयार्थ-- ____साधु सभी पदार्थों में अनुराग रहित हो, हित अर्थात् ज्ञान और चारित्र से युक्त हो इन्द्रियों और मन से संवरयुक्त हो धर्मार्थी हो तपस्या में उग्र सामर्थ्यवान् हो और अपनी इन्द्रियों को संवर में रख कर विचरे अर्थात् साधु शम्हा-'अणिहे अनीहः साधु पु३५ ४ ५ वस्तुमा रेनेड ना ४३ 'सहिएसहितः' ज्ञान यात्रिपा॥ हिताप भ. ४३ 'सं वुडे-संवृतः' धन्द्रिय शेष भनथी गुप्त २ 'धम्मट्टी-धर्मार्थी म प्रयासन वा मने तथा जबहाणवीरिप-उपधानवीयः तपमा पराभ ४२ 'समाहियई दिए- समाहितेन्द्रियः' छन्द्रियाने नियमनमा राणे 'विहरेज--विहरेत् ॥ प्राथी साधु सयभनु अनुष्ठान ४२ उभो 'अत्तहिय मात्महितम् पातार्नु च्याए। 'दुहेण-दुःखेन'हुमथा 'लब्भइ-लभ्यते प्रात थाय छे.॥30॥ સૂત્રાર્થ સાધુએ સઘળા પદાર્થોમાં અનુરાગરહિત થવું જોઈએ, હિત એટલે કે જ્ઞાન અને ચારિત્રથી યુક્ત થવું જોઈએ, ઇન્દ્રિયે અને મનના સંવરથી યુક્ત થવું જોઈએ, ધર્માથી થવું જોઈએ, તપસ્યામાં ઉગે સામર્થ્ય યુક્ત બનવું જોઈએ અને પિતાની ઇન્દ્રિયને For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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