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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ बोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ चार्वाकमतस्वरूपनिरूपणम् ४३ अजानानाः सम्यगनवबुध्यमानाः 'माणवा' मानवाः =स्वमताभिमानिनः पुरुषाः 'कामेहिं' कामेषु शब्दादिकामभोगेषु (सत्ता)सक्ताः गृद्धिभावमुपगता, नरकनिगोदादि दुर्गतिं प्राप्नुवन्ति । तदुक्तम् "प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ।" इति ॥६॥ पूर्वस्मिन् सूत्रे विपरीतप्ररूपकाणां स्वरूपं प्रदर्शितम् । साम्प्रतं सूत्रकारवार्वाकमतं स्वरूपतो वर्णयन्नाह-संति' इत्यादि। संति पंच महब्भूया, इह मेगेसि माहिया । पुढवी आऊ तेऊ वा, वाऊ आगासपंचमी ॥७॥ छायासंति पंच महाभूतानि इहैकेपाम् आख्यातानि । पृथिव्यापस्तेजो वा वायुराकाशपंचमानि ॥७॥ का विनाश होता है और कर्मविनाश से मोक्ष होता है, इत्यादि । इस अर्थ को न जानते हुए स्वमत के अभिमानी पुरुष शब्दादि कामभोगों में गृद्ध होते हैं और नरकनिगोद आदि दुर्गतियों को प्राप्त होते हैं। कहा भी है-"प्रसक्ता कामभोगेषु" इत्यादि । जो कामभोगों में आसक्त हैं वे अशुचि नरक में जाकर पड़ते हैं ॥ ६ ॥ पूर्वसूत्र मे विपरीत प्ररूपणा करने वालों का स्वरूप कहा है। अब सूत्रकार चार्वाक (नास्तिक) मत के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं - 'संति' इत्यादि ।। शब्दार्थ-'इह-इह' इस लोक में 'एगेसिं-एकेषां' किन्हीं ने 'पंच-पञ्च' . पांच 'महन्भूया-महाभूतानि' महाभूत 'संति-सन्ति' हैं ऐसा कहा है 'पुढवी-पृथिवी' આ અર્થને નહીં જાણનારા એવાં પિત પિતાના મતનું અભિમાન કરનારા પુરૂ શબ્દાદિ કામગોમાં લુબ્ધ થાય છે અને નરક નિગદ આદિ દુર્ગતિઓની प्रान्ति ४२ छ. ५j ५९४ छ -"प्रसक्ताः कामभोगेषु" त्याहि-रे मनुष्यो आमભોગોમાં આસક્ત હોય છે, તેઓ અશુચિ નરકમાં જઈને ઉત્પન્ન થાય છે. દા. પૂર્વ સૂત્રમાં વિપરીત પ્રરૂપણ કરનારાઓનું સ્વરૂપ પ્રકટ કરવામાં આવ્યું हवे सूत्रे२ यावाड (नास्ति) मतना २१३५नु न “संति" त्या सूत्रा । ४३ छ. “संति” त्याहि सन्हा-'इह-इह' मा सभा 'पगेसिं-एकेषां ये 'पंच-पञ्च पाय 'महाभया-महाभूतानि' महाभूत। 'संति-सन्ति' छे. तेम ४थु छ. 'पुढवी-पृथिवी' पृथ्वी For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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